सुप्रीम कोर्ट 
बिहार

बिहार एसआईआर : सुप्रीम कोर्ट ने वोटर लिस्ट से हटाए 3.66 लाख लोगों के नामों का मांगा ब्यौरा

सभी जानकारी 9 अक्टूबर तक अदालत के रिकॉर्ड पर लाये चुनाव आयोग

नयी दिल्ली/ पटना : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनाव आयोग से उन 3.66 लाख मतदाताओं का ब्योरा उपलब्ध कराने को कहा जो मसौदा मतदाता सूची का हिस्सा थे लेकिन बिहार के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान के बाद तैयार अंतिम मतदाता सूची में वे नदारद हैं। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में 'भ्रम’ है।

शीर्ष अदालत ने रेखांकित किया कि जब मसौदा सूची तैयार की गई थी तब 65 लाख नाम हटाए गए थे, लेकिन अंतिम सूची में नाम जोड़े गए। पीठ ने सवाल किया कि पूछा कि क्या जोड़े गए नाम ‘हटाए गए नाम हैं या नए नाम’ हैं।

निर्वाचन आयोग ने न्यायालय को सूचित किया कि 30 अगस्त को मसौदा मतदाता सूची के प्रकाशित होने के बाद जोड़े गए ज्यादातर नाम नए मतदाताओं के हैं और अब तक सूची से बाहर किये गए किसी भी मतदाता ने कोई शिकायत या अपील दायर नहीं की है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह निर्देश तब पारित किया, जब राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) जैसे विपक्षी दलों के नेताओं सहित कुछ याचिकाकर्ताओं ने कहा कि निर्वाचन आयोग ने अंतिम सूची से मतदाताओं को हटाए जाने को लेकर कोई नोटिस या कारण नहीं बताया है।

पीठ चुनावी राज्य बिहार में एसआईआर कराने के निर्वाचन आयोग के 24 जून के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। उसने कहा कि निर्वाचन आयोग बाहर रखे गए मतदाताओं के बारे में उपलब्ध सभी जानकारी 9 अक्टूबर तक अदालत के रिकॉर्ड पर लाये, जब वह एसआईआर प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आगे की सुनवाई करेगी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि सभी के पास मतदाता सूची का मसौदा है और अंतिम सूची भी 30 सितंबर को प्रकाशित हो चुकी है, इसलिए तुलनात्मक विश्लेषण के माध्यम से आवश्यक आंकड़े प्रस्तुत किए जा सकते हैं।

न्यायमूर्ति बागची ने निर्वाचन आयोग का पक्ष रखने के लिए पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी से कहा कि अदालती आदेशों के परिणामस्वरूप चुनावी प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता और पहुंच बढ़ी है।

पीठ ने कहा कि चूंकि अंतिम सूची में मतदाताओं की संख्या से ऐसा प्रतीत होता है कि मसौदा सूची की संख्या में वृद्धि की गई है, इसलिए किसी भी भ्रम से बचने के लिए, अतिरिक्त मतदाताओं की पहचान का खुलासा किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति बागची ने कहा, ‘आप हमसे सहमत होंगे कि चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और पहुंच में सुधार हुआ है। आंकड़ों से पता चलता है कि आपके द्वारा प्रकाशित मसौदा सूची में 65 लाख लोगों के नाम हटाए गए थे, और हमने कहा कि जिनकी मृत्यु हो गई या जो स्थानांतरित हो गया है वह ठीक है, लेकिन यदि आप किसी का नाम हटा रहे हैं, तो कृपया नियम 21 और एसओपी (मानक परिचालन प्रक्रिया) का पालन करें।

उन्होंने कहा, हमने यह भी कहा कि जिनके भी नाम हटाए गए हैं, कृपया उनके आंकड़े अपने निर्वाचन कार्यालयों में जमा कराएं। अब अंतिम सूची में आंकड़ों में वृद्धि प्रतीत होती है और सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भ्रम की स्थिति है - जोड़े गए नामों की पहचान क्या है, क्या वे हटाए गए नाम हैं या नए नाम हैं। आपके पास मसौदा और अंतिम सूची दोनों हैं। बस इन विवरणों को छांटकर हमें जानकारी दीजिए।

द्विवेदी ने जवाब दिया कि अधिकतर नाम नए मतदाताओं के हैं और कुछ पुराने मतदाता भी हैं, जिनके नाम मसौदा सूची प्रकाशित होने के बाद जोड़े गए हैं। उन्होंने कहा, अब तक ऐसे किसी मतदाता ने शिकायत या अपील नहीं की है, जिसका नाम हटाया गया है।

सुनवाई की शुरुआत में राजद की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण और एसआईआर कराने के निर्वाचन आयोग के फैसले को चुनौती देने वाले विपक्षी नेताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक एम सिंघवी ने आरोप लगाया कि सूची से बाहर रखे गए मतदाताओं को उनके नाम हटाने के लिए कोई नोटिस या कारण नहीं बताया गया।

सिंघवी ने कहा, कोई नहीं जानता कि क्या नाम जोड़ने का काम मसौदा सूची से बाहर रखे गए 65 लाख मतदाताओं के लिए था या नए मतदाताओं को जोड़ा गया था, जिससे अंतिम सूची में बाहर रखे गए मतदाताओं की संख्या कम हो गई।

भूषण ने आरोप लगाया कि निर्वाचन आयोग आवश्यक नियमों का पालन नहीं कर रहा है और मतदाता सूची की शुचिता सुनिश्चित करने के बजाय एसआईआर ने समस्या को और बढ़ा दिया है।

उन्होंने दलील दी, पारदर्शिता का पूर्ण अभाव है। जब माननीय न्यायाधीशों ने उन्हें 65 लाख नामों की सूची देने के लिए बाध्य किया, तभी उन्होंने विवरण दिया और उसे सार्वजनिक किया। अब, उन्होंने मसौदा सूची के प्रकाशन के बाद दर्ज की गई आपत्तियों के कारण हटाए गए 3.66 लाख मतदाताओं की सूची नहीं दी है।

द्विवेदी ने दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि प्रत्येक मतदाता जिसका नाम हटाया गया है, उसे कारण बताया गया है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यदि कोई याचिकाकर्ता या पीड़ित व्यक्ति अदालत के समक्ष है तो पीठ निर्वाचन आयोग को निर्देश दे सकती है कि वह इन 3.66 लाख मतदाताओं में से उन मतदाताओं की सूची दे, जिन्हें कारण नहीं बताए गए हैं।

बिहार के कुछ कार्यकर्ताओं की ओर से पेश वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट केवल अलग-अलग आंकड़े देती है और लिंग-वार और आयु-वार दावों और हटाए गए नामों का विवरण नहीं देती।

पीठ ने ग्रोवर के माध्यम से दायर याचिका पर नोटिस जारी किया और निर्वाचन आयोग से जवाब देने को कहा।

न्यायालय ने अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर भी नोटिस जारी किया, जिसमें फॉर्म-6 के बारे में स्पष्टीकरण मांगा गया था, जिसका उपयोग नागरिक मतदाता सूची में अपना नाम जोड़ने के लिए करते हैं।

पीठ ने उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया से कहा कि न्यायालय पहले ही कह चुका है कि आधार नागरिकता और निवास का प्रमाण नहीं है।

निर्वाचन आयोग ने 30 सितंबर को बिहार की अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित करते हुए कहा कि अंतिम मतदाता सूची में मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 47 लाख घटकर 7.42 करोड़ रह गई है, जबकि विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) से पहले यह संख्या 7.89 करोड़ थी।

हालांकि, एक अगस्त को प्रकाशित मसौदा सूची के मुकाबले अंतिम सूची में मतदाताओं की संख्या में 17.87 लाख की वृद्धि हुई है। मसौदा सूची में यह संख्या 7.24 करोड़ थी। मसौदा सूची में मृत्यु, प्रवास और मतदाताओं के दोहराव सहित विभिन्न कारणों से 65 लाख मतदाताओं के नाम मूल सूची से हटा दिए गए थे।

आयोग ने छह अक्टूबर को घोषणा की कि बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा के लिये दो चरणों में चुनाव होंगे। पहले चरण में 121 सीट के लिये छह नवंबर को मतदान होगा, जबकि शेष 122 निर्वाचन क्षेत्रों में 11 नवंबर को चुनाव होगा। मतों की गिनती 14 नवंबर को होगी।

SCROLL FOR NEXT