ठेकुआ बनाती महिला फाइल फोटो  
आसनसोल

आधुनिक मिठाइयों पर आस्था का ‘ठेकुआ-कटोनिया’ पड़ रहा भारी

जामुड़िया : आधुनिक युग में जहां गुलाब जामुन, रसगुल्ला, रसमलाई और चॉकलेट जैसे मिठाइयों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है, वहीं आस्था का महापर्व छठ पूजा पारंपरिक प्रसादों की महत्ता को आज भी जीवंत बनाए हुए है। छठ व्रत के दौरान बनने वाली मिठाइयों में ठेकुआ, कटोनिया और आटा-चावल के लड्डू का जो धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, उसके आगे आधुनिक मिठाइयां फीकी दिखाई देती हैं। यही कारण है कि बाजार में चाहे जितनी भी चमक-दमक वाली मिठाइयां उपलब्ध हों, छठ पूजा के चार दिन इन पारंपरिक प्रसादों की धूम सबसे अलग रहती है। छठ व्रत करने वाली सुलोचना देवी, राधारानी बरनवाल सहित अन्य व्रतियों का कहना है कि इन प्रसादों के पीछे केवल स्वाद नहीं बल्कि पवित्रता, शुद्धता और प्रकृति से जुड़ाव भी निहित है। गुड़, घी, आटा और चावल जैसे मूल भारतीय खाद्य पदार्थों से तैयार होने वाले ये प्रसाद स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माने जाते हैं। इनका उपयोग बिना किसी रसायन, रंग या कृत्रिम सामग्री के किया जाता है, जो शरीर को पोषक तत्व प्रदान करते हैं।

कैसे बनता है ठेकुआ?

ठेकुआ बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह पारंपरिक और आस्था से जुड़ी होती है। गेहूं के आटे में गुड़ या चीनी की चाशनी मिलाई जाती है। इसमें नारियल का बूरा, इलायची पाउडर और देसी घी मिलाकर गूंथा जाता है। इसके बाद लकड़ी के सांचे में अलग-अलग आकृतियों में दबाकर गर्म घी में तला जाता है। ठेकुआ को चढ़ाने से पहले इसे पूरी तरह ठंडा होने दिया जाता है, जिससे यह कुरकुरा और लंबे समय तक सुरक्षित रहता है।

कटोनिया की विशेषता

कटोनिया चावल के आटे से तैयार किया जाने वाला हल्का और पाचक प्रसाद है। चावल के आटे को गुड़ की चाशनी में मिलाकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर सुखाया जाता है। यह गुड़ की प्राकृतिक मिठास से भरपूर होता है और ऊर्जा देने वाला माना जाता है।

आस्था और परंपरा का संगम

व्रतधारियों का मानना है कि ठेकुआ मात्र मिठाई नहीं, बल्कि सूर्य देव और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। घरों में साफ-सफाई, शुद्धता और मन-वचन-कर्म की पवित्रता के साथ इसे बनाया जाता है। परिवार की महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप से तैयार किया गया यह प्रसाद रिश्तों में मिठास घोलने का भी संदेश देता है।

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