प्रिंसिपल सेक्रेटरी इंडस्ट्रीज कॉमर्स एंड इंटरप्राइजेज वंदना यादव से बात करते ईसीएल के सीएमडी सतीश झा 
आसनसोल

ईसीएल के सीएमडी ने की प्रिंसिपल सेक्रेटरी इंडस्ट्रीज कॉमर्स एंड इंटरप्राइजेज से मुलाकात

ईसीएल की समस्या को सुलझाने व उत्पादन बढ़ाने के लिए विस्तारीकरण में मांगा सहयोग

सांकतोड़िया : ईसीएल के विकास कार्यों में आ रही समस्याओं को सुलझाने के साथ कोयला खनन में सभी के सहयोग की मांग को लेकर ईसीएल के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक सतीश झा ने कोलकाता में प्रिंसिपल सेक्रेटरी इंडस्ट्रीज कॉमर्स एंड इंटरप्राइजेज वंदना यादव से मुलाकात की। मालूम हो कि जब से ईसीएल का दायित्व सीएमडी सतीश झा ने संभाला है, तब से लगातार राज्य सरकार के अधिकारियों समेत नेताओं से मिलकर ईसीएल के विकास कार्यों में आ रही समस्याओं को सुलझाने के साथ कोयला खनन में सभी के सहयोग की मांग कर रहे हैं। ईसीएल दो राज्यों में खनन कर रही है। झारखंड में तीन परियोजनाएं मुगमा, एसपी माइंस और राजमहल हैं। बाकी सभी कोयला खदानें पश्चिम बंगाल में हैं। सीएमडी सतीश झा ने प्रिंसिपल सेक्रेटरी इंडस्ट्रीज कॉमर्स एंड इंटरप्राइजेज से मिलकर कोयला खनन करने में आ रही समस्याओं के समाधान कैसे किया जाये, इस पर विचार-विमर्श किया। मुख्य सचिव वंदना यादव ने ईसीएल सीएमडी को कंपनी से जुड़े मुद्दों को समाधान करने में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया है। जानकारी के अनुसार ईसीएल के 13 एरिया में कोयला खनन हो रहा है। कंपनी के कोयला खनन में सबसे बड़ी समस्या जमीन की आ रही है। जमीन नहीं मिलने के कारण किसी भी खदान का विस्तारीकरण नहीं हो पा रहा है। कोयला उत्पादन के लिए प्रत्येक वर्ष वार्षिक उत्पादन लक्ष्य निर्धारित करता है। उस उत्पादन लक्ष्य को पाने के लिए कोयला उत्पादन में बढ़ोतरी करना जरूरी रहता है। सूत्रों का कहना है कि जब जमीन ही नहीं रहेगी तो खदानों का विस्तारीकरण कैसे होगा। विस्तारीकरण नहीं होने पर कोयला उत्पादन बढ़ना संभव नहीं है। इस समस्या से निजात पाने के लिए सतीश झा ने प्रिंसिपल सेक्रेटरी इंडस्ट्रीज कॉमर्स एंड इंटरप्राइजेज से भेंट कर मदद करने की गुहार लगाई है। वहीं रानीगंज मास्टर प्लान को लेकर भी चर्चा हुई। मालूम हो कि रानीगंज मास्टर प्लान 16 वर्षों से अधर में लटका हुआ है। मास्टर प्लान वर्ष 2009 में बना था। सोलह वर्ष बीत गया परंतु समस्या का समाधान नहीं हो पाया है। रानीगंज मास्टर प्लान के लिए आवश्यक 362.5 एकड़ में से केवल 151.72 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया है, शेष 210.77 एकड़ जमीन की और जरूरत है। यही कारण है कि पुनर्वास के लिए बनाये जाने वाले फ्लैटों का निर्माण भी काफी धीमा है।

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