आसनसोल

पत्नी की बीमारी से दुखी लाचार पति ने लगाई फांसी, सुनकर पत्नी ने भी तोड़ा दम

श्मशान में एक साथ जलाई गई पति पत्नी की चिताएं

मिदनापुर : लोगों ने फिल्मों में देखा होगा कि कई बार जोड़ियां एक दूसरे के साथ जिंदगी की डोर को तोड़ दुनिया छोड़ जाती हैं। ऐसा ही अगर रीयल लाइफ की जगह सच में हो तो। पश्चिम मिदनापुर जिले के दासपुर के एक गांव में ऐसी ही एक घटना घटी। पश्चिम मिदनापुर जिले के दासपुर थाने के सुपापुरशुरी गांव के श्मशान में दो चिताएँ धधक रही थी, एक-दूसरे के बिल्कुल पास। एक चिता में पति का शव जल रहा था तो दूसरी में ‘‘सदा सुहागन’’ पत्नी का शव। पवित्र प्रेम और स्नेह का एक अध्याय चिताओं में जलकर राख हो रहा था। पूरा श्मशान घाट खामोश और मौन था, लोग यही सोच रहे थे कि इस जोड़ी को देखिए, शादी के मंडप में एक साथ जीने मरने की न सिर्फ कसम खाई बल्कि उसे निभाते हुए एक साथ दुनिया छोड़ भी दी।
     पश्चिम मिदनापुर जिले के दासपुर थाने का सुपापुरशुरी गाँव। सुबलचंद्र भुइयां (65) और उनकी पत्नी लतारानी भुइयां (58) दासपुर के इसी गाँव में रहते थे। लतारानी देवी लंबे समय से एक गंभीर बीमारी से पीड़ित थीं। सुबल चंद्र कड़ी मेहनत के बाद अपनी पत्नी को ठीक करने में असफल रहे। पत्नी की बीमारी और कष्ट भी उन्हें खाए जा रहे थे। जिससे वे अत्यधिक अवसाद से ग्रस्त थे। शायद अपनी पत्नी की जीवन रक्षा की जंग हारने की बात सोचा सुबलचंद्र भुइंया ने शनिवार को आत्महत्या कर ली। शाम को पति की मृत्यु की खबर सुनकर उनकी पत्नी ने भी दम तोड़ दिया। दोनों ने इस दुनिया में प्रेम की मिसाल कायम कर विदा ली। रविवार को उनके अटूट वैवाहिक रिश्ते को एक साथ चिता पर जला दिया गया। जानकारी मिली कि सुबल व लतारानी का 30 साल लंबा वैवाहिक जीवन रहा। दो बेटियों, श्रावणी और कृष्णा, की शादी हो चुकी है। उन्होंने अपनी दोनों बेटियों का पालन-पोषण बड़ी मुश्किल से किया। दासपुर-1 पंचायत समिति के सदस्य और उस गाँव के निवासी दशरथ दलुई ने कहा, उनके पास कोई ज़मीन जायदाद नहीं थी, वे मेहनतकश लोग थे। इसके बावजूद उनके बीच मधुर संबंध थे। पिछले कुछ साल उनलोगों के लिए सबसे कठिन थे। लता देवी लंबे समय से कई तरह की शारीरिक समस्याओं से जूझ रही थीं। खाने-पीने, नहाने-धोने और दवा की ज़िम्मेदारी उसके पति के कंधों पर थी। पड़ोसियों ने बताया कि सुबल ने कई जगहों पर अपनी पत्नी का इलाज कराया था। जिनलोगों ने उम्मीद जताई उनपर भरोसा कर पत्नी का इलाज कराने गया लेकिन हर बार निराश होकर लौट आता। हर दिन, लतादेवी का बेबस चेहरा देखकर सुबल का कलेजा फट जाता था। स्थानीय लोगों के अनुसार सुबल कहता भी था कि मुझे नहीं लगता कि मैं उसे बिल्कुल बचा पाऊँगा...। उसके बाद शनिवार की सुबह सुबलचंद्र भुइंया चुपचाप घर से निकल गए। बाद में, पुलिस ने घर से थोड़ी दूरी पर चंद्रकोणा थाने के दोरखोला गाँव में एक पेड़ से लटकी उनकी लाश बरामद की। परिवार के सदस्य वहाँ पहुँचे। यह खबर अभी तक उनकी बीमार पत्नी तक नहीं पहुँची थी। उस शाम, जब किसी तरह उनके पति की मृत्यु की खबर उनकी पत्नी तक पहुँची, तो लतादेवी का हृदय धड़कना छोड़ चुपचाप रुक गया। श्रावणी-कृष्णा सोच भी नहीं सकते थे कि उनके माता-पिता इस तरह मर जाएँगे। वे दोनों फूट-फूट कर रो रहे थे। वे कह रहे थे कि उनके माता-पिता के बीच जो प्रेम था, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। जब भी पिता सुनते कि माँ दर्द से तड़प रही है, तो वह टूट जाते। रविवार को घाटाल में पोस्टमार्टम के बाद शव घर लाया गया। उसी दिन दंपत्ति के शवों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। गांव के लोगों का कहना है कि उन्होने कई जोड़ों का जीवन देखा है लेकिन ऐसा निस्वार्थ प्रेम कम ही देखने को मिलता है। उनका प्यार सिर्फ साथ रहने तक ही सीमित नहीं था वे एक दूसरे को दिल की गहराई से चाहते थे, पत्नी को स्वस्थ न कर पाने का दर्द सुबल को धीरे-धीरे मार रहा था। इस प्रेम कहानी में कोई तोहफा नहीं था। था तो बस एक-दूसरे की परवाह और जिम्मेदारी थी।

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