सारे रंग जलाने के बाद भी
रंग बदलता नहीं राख का
जो रंग था
ग्यारह साल के बच्चे द्वारा दी गई
मुखाग्नि से जले उसके पिता की राख का
वही तो था अंगीठी में जलकर
राख बने तिनकों का
कागज के टुकड़े, फटे जूते
सूखी टहनियां और नीली कमीज की
राख का रंग भी वही था
बेटा राख में टटोल रहा था
बाप का सारांश
राख में से झांक रहा था
एक संबंध का अवशेष
रोज स्कूल से लाने वाले बापू
दिवाली में जूते पहनकर उसे
पटाखा जलाता देखकर झिड़कियां देते
सर्दी में स्वेटर और मोजा पहनाते
रविवार की सुबह बाजार में
सब्जियों की पहचान कराते
'कल तेरे लिए ला दूंगा ज्यामिति का नया डिब्बा'
ऐसा कहने वाले बापू को वह ढूंढ रहा था
अपनी कोमल हथेली की मुट्ठी भर राख में
छाती के बटन के पास सूख चुके
बूंद भर पसीने के
दाग को छुपाती वह नीली कमीज...
'अनवांटेड सेवेंटी टू' की 'यूज्ड स्ट्रैप' को
जेब में सहेज कर रखी वह नीली कमीज
जल जाने के बाद भी
राख के रंग को बदल नहीं पाई
बल्कि आंखों के लिए टटोलने को
छोड़ गई एक और दाग
राख का रंग था
बिलकुल राख-सा ।