श्री श्री रवि शंकर के शब्दों में माता अष्टलक्ष्मी का महत्व | Sanmarg

श्री श्री रवि शंकर के शब्दों में माता अष्टलक्ष्मी का महत्व

नई दिल्ली: वेदों में कहा गया है ‘धनं इन्द्रो, धनं अग्निः, धनं वसु:’। केवल पैसे की नोट ही धन नहीं है। आरोग्य भी धन है, ज्ञान भी धन है, आपके भीतर का शौर्य भी धन है, वीरता भी धन है और गुण भी धन है । ये सब लक्ष्मी के स्वरूप हैं। जब लोग लक्ष्मी की उपासना करते हैं तो नारायण साथ में ही रहते हैं। यदि धन को लक्ष्मी मानकर, देवत्व मानकर उपासना करते हैं तो कोई कभी भी भ्रष्टाचार में नहीं उतरेगा। धन को सम्मान देना चाहिए। धन को दोषी न बनाएँ । लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अक्सर धन के लोभी हो जाते हैं फिर समझते हैं कि वे लक्ष्मी के उपासक हैं । धन की उपार्जन ज़रूरी है लेकिन बुद्धिमानी से करें । हमारे ऋषियों ने कहा कि लक्ष्मी के आठ स्वरुप हैं जिन्हें अष्टलक्ष्मी कहा गया है। सबसे पहली हैं आदिलक्ष्मी; हम कहाँ से आए हैं, हमारे जीवन का स्रोत कहाँ है? इसके बारे में बहुत कम लोग सोचते हैं। लोग पूरी जिंदगी ऐसे ही गुजार देते हैं लेकिन न उन्हें जीने का पता चलता है और न ही मृत्यु का। यदि हम जीवन की खोज में निकलें कि “जीवन क्या है? मेरा मूल क्या है?” तो इस पर सोचने से जीवन को एक विशालता मिलती है। यह पहली बार नहीं है जब हम इस पृथ्वी पर आए हैं; हम यहाँ पता नहीं कितनी बार आए हैं लेकिन हम भूल गए हैं । जब हमें अपने जन्म-जन्मान्तरों की स्मृति जागृत हो जाए तब जीवन में गहराई मिलने लगती है। यह पृथ्वी करोड़ों वर्षों से है लेकिन हम यहाँ केवल थोड़े दिनों के लिए हैं और इस जीवन के उपरांत क्या होगा—इस पर विचार करना हमें हमारे मूल के प्रति जागृत करता है। यदि पैसा हो तो ही समाज में काम चलता है। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों को जब धन नहीं मिलता, तब समस्या होती है। यह धनलक्ष्मी की कमी है। यदि धन आ गया लेकिन धान्यलक्ष्मी की कमी हो तो स्थिति और खराब हो जाती है। उदाहरण के लिए, जब पैसे होते हैं लेकिन अनाज नहीं, तो क्या लाभ है ?

 

इसके बाद संतानलक्ष्मी है। अगर बच्चे नहीं हैं तो दुःख होता है। बच्चों की उद्दंडता भी दुख देती है। यदि अच्छी संतान नहीं हैं तो यह संतान लक्ष्मी की कमी है। फिर विजयलक्ष्मी है- सब कुछ होने के बाद भी यदि कोई कार्य में सफल नहीं होता, तो यह विजयलक्ष्मी की कमी है। फिर धैर्यलक्ष्मी है। यदि सब कुछ है लेकिन धैर्य नहीं है तो जीवन कैसे चलेगा? लोग डर-डर कर जीवन जीते हैं। यह धैर्यलक्ष्मी की कमी का संकेत है। भाग्यलक्ष्मी तब आती है जब जो चीज चाहिए तब वह नहीं मिलती। कभी-कभी हम बड़े सपने देखते हैं लेकिन भाग्य साथ नहीं देता। अंत में, राज्यलक्ष्मी है। यदि सभी कुछ होने के बाद भी कोर्ट केस या झंझट हो तो यह राज्यलक्ष्मी की कमी है। जीवन में संतुष्टि पाने के लिए भक्ति और ज्ञान की आवश्यकता होती है। ध्यान करने से ही हमें ज्ञान और भक्ति दोनों मिलती है । ध्यान से बुद्धि तीक्ष्ण होती है और हमारी चैतन्य शक्ति विकसित होती है। जब हमारा हृदय कोमल होता है, तब वहाँ देवी भगवती का निवास होता है। इसलिए ध्यान में रहना महत्वपूर्ण है। हमें जड़ता से दूर रहना चाहिए और साधना, सत्संग, सेवा में लगे रहना चाहिए।इस भाव से हमें प्रसन्न रहना चाहिए। जीवन को बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। ध्यान करने वालों के चेहरे पर मुस्कान होनी चाहिए। जब हम अपने दुख-दर्दों की आहुति देते हैं, तो जीवन में मुक्ति मिलती है। हमें विश्वास रखना चाहिए कि हमारी इच्छाएँ समय-समय पर पूरी होती रहेंगी। संस्कृत में कहावत है, “उद्योगिनम पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी।” लक्ष्मी उन्हीं के पास आती हैं जो प्रयत्न करते हैं जो धैर्य रखते हैं। तो इस विश्वास के साथ आगे बढ़ें कि आपको जिसकी भी आवश्यकता है वह आपको ज़रूर मिलेगा ।

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