कोलकाता: प्राचीन समय की बात है, जब धरती पर असुरों का अत्याचार बढ़ गया था। असुरों के अत्याचार से परेशान होकर देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे इस समस्या का हल पूछा। तब भगवान शिव ने उन्हें बताया कि जब असुरों का अत्याचार बहुत बढ़ जाएगा और देवताओं के अहंकार से संसार में संतुलन बिगड़ने लगेगा, तब जगत की रक्षक देवी जगद्धत्री का अवतार होगा। भगवान शिव ने यह भी कहा कि देवी जगद्धत्री के चार हाथ होंगे, जिनमें शंख, चक्र, धनुष और बाण होगा। शंख का प्रतीक आकाश में ध्वनि फैलाने वाला होता है, जो शांति और समृद्धि का संकेत है। चक्र धर्म और न्याय का प्रतीक है, जो बुराई को नष्ट करने का कार्य करता है। धनुष और बाण का प्रतीक शक्ति और साहस का होता है, जो राक्षसों को हराने के लिए प्रयुक्त होता है। तभी, देवी जगद्धत्री का अवतार हुआ और उनके साथ उनके वाहन सिंह ने धरती पर आकर असुरों का वध करना शुरू किया। जगद्धत्री देवी का रूप अत्यधिक तेजस्वी और भव्य था। उन्होंने न केवल असुरों को हराया, बल्कि देवताओं को उनके अहंकार से भी मुक्ति दिलाई।
यह माना जाता है कि देवी जगद्धत्री ने अपनी शक्तियों के द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि जो लोग अपनी शक्ति और अहंकार में अंधे हो जाते हैं, उन्हें शरण और संतुलन के लिए हमेशा मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। उनकी पूजा करने से मनुष्य को मानसिक और शारीरिक शांति मिलती है। आज भी, देवी जगद्धत्री की पूजा विशेष रूप से बंगाल, ओडिशा और असम में बड़े धूमधाम से होती है। खासतौर पर चंद्रनगर और कृष्णनगर जैसे शहरों में यह पूजा बड़े धूमधाम से मनाई जाती है, जहां देवी जगद्धत्री के स्वागत के लिए भव्य झांकियां सजाई जाती हैं। जगद्धत्री पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह एक संदेश भी है कि जीवन में संतुलन और धर्म के मार्ग पर चलने से ही सच्ची शक्ति और सफलता प्राप्त होती है। जब तक हम अपने अहंकार को नियंत्रित नहीं करते, तब तक हम असुरों के समान होते हैं, लेकिन जब हम अपनी गलतियों को स्वीकार करते हैं और ईश्वर के मार्ग पर चलते हैं, तो देवी जगद्धत्री की तरह हमें मार्गदर्शन और आशीर्वाद मिलता है।
अंत में, यह पूजा हमें यह सिखाती है कि शांति, समृद्धि, और सफलता का रास्ता केवल सत्य और धर्म के साथ है।