कोलकाता : हमारे शरीर एवं स्वास्थ्य पर आहार-विहार के साथ ही ऋतु तथा जलवायु का भी सीधा प्रभाव पड़ता है। स्वास्थ्य के लिए शीतऋतु को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस ऋतु को हेल्दी सीजन भी कहा जाता है। आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार इस ऋतु में संतुलित भोजन, संयमित आहार-विहार, ब्रह्मचर्य, पोषक एवं बलवीर्यवर्द्धक पदार्थों का सेवन स्वास्थ्य रक्षक होता है।
आयुर्वेद के सिद्धान्तों के अनुसार शीतऋतु में हमारा खान-पान, रहन-सहन, परहेज एवं दिनचर्या कैसी हो? शीतऋतु में मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा करने और उसे निरोग रखने में प्रकृति बहुत ही अधिक सहायक होती है।
शीतऋतु में सूर्य दक्षिणायन हो जाता है, वहीं चन्द्रमा का बल प्रबल हो जाता है, इसी कारण दिन छोटे और रातें लंबी होती हैं जिससे शरीर को पर्याप्त विश्राम और पाचन संस्थान को पाचन के लिए काफी समय मिल जाता है। इस समय शारीरिक ऊष्मा के प्रबल होने से गरिष्ठ भोजन भी आसानी से पच जाता है।
प्राकृतिक तत्वों में मधुर अम्ल, एवं लवण रसों की वृद्धि हो जाती है। फलस्वरूप प्राणियों में सौम्यता उत्पन्न होती है। इसी शक्ति से स्वास्थ्य, धैर्य, लावण्य आदि गुण स्थिर रहते हैं। इस समय शरीर में मेधाशक्ति, बल एवं ओज शक्ति की भी वृद्धि होती है।
शीतकाल की शुरूआत शरद ऋतु (आश्विन-कार्तिक) से होती है। इस समय वातावरण में शीतगुण की वृद्धि होती है, इसलिए ठण्ड से शरीर की रक्षा के लिए उष्म (गर्म) वस्त्रों और खाद्य पदार्थों का सेवन अनिवार्य होता है। शरीर में वर्तमान ऋतु से पूर्व कुछ दोषों की वृद्धि हो जाती है। मौसमी चीजों के सेवन से बढ़े हुए दोषों का शमन स्वत: ही हो जाता है।
शीतकाल में ठंड बढ़ने के साथ ही जठराग्नि भी तेज हो जाती है, फलस्वरूप भूख ज्यादा लगती है। इस समय भूख दबाना हानिकारक हो सकता है क्योंकि शरीर की बढ़ी हुई अग्नि इसके साथ धातु, रस, रक्त, मांस आदि को भी जला डालती है। इससे शरीर क्षीण और वायु कुपित हो जाती है।
यूं भी इस समय पित्त का शमन और वायु तथा कफ का संचय होता है इसलिए इस ऋतु में ऐसे आहार-विहार से परहेज रखना चाहिए जिससे वात तथा कफ का प्रकोप बढ़े। इस समय तिक्त, मधुर, लवण और अम्ल रस वाले पौष्टिक तथा बलवर्द्धक पदार्थों का नियमित सेवन करना चाहिए। छुहारा, काजू, घी, दूध, मक्खन-मलाई, गुड़, मिश्री, मुरब्बा, गाजर का हलवा, सभी मौसमी फल, सरसों चना, बथुआ, मेथी आदि मौसमी साग, सब्जियों के सेवन से शरीर तन्दुरूस्त व निरोग रहता है। पथरी के रोगी को साग का सेवन नहीं करना चाहिए।
शीतऋतु में कटु, तिक्त एवं कसैले भोजन से परहेज रखना चाहिए। फूलगोभी का इस्तेमाल अत्यंत कम ही करना चाहिए क्योंकि इससे वायु विकार, जोड़ों में दर्द, आमवात, सन्धिवात और गैस की शिकायतें बढ़ सकती हैं। इस ऋतु में देर रात भोजन करने, प्रात: देर तक सोये रहने, बासी भोजन करने एवं देर तक उपवास करने से शरीर में वात वायु का प्रकोप बढ़ जाता है। इन्हीं कारणों से शीतऋतु में वात विकारों से ग्रस्त लोगों के शारीरिक कष्ट बढ़ जाते हैं। कफ के रोगियों को खटाई, दही, केला, एवं खट्टे पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।