कोलकाता : महानगर में बारिश के कारण बदहाल पड़ी सड़कें वाहन चालकों और राहगीरों के लिए समस्या बन गयी हैं। आये दिन इन जर्जर व खराब सड़कों के कारण वाहन चालकों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इन सड़कों की मरम्मत के लिए बार-बार कोलकाता नगर निगम की ओर से आश्वासन देने के बाद भी यह सड़कें जस की तस बनी हुई हैं और बारिश के दिनों में तो इनकी हालत और भी बदतर हो जाती है। इन समस्याओं को लेकर मेयर फिरहाद हकीम ने कहा कि कुछ रास्तों का काम किया गया है पर कुछ की हालत अब भी वैसे ही है। उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों से सड़कों पर मेस्टिक का काम किया जाता था, जो कुछ दिनों तक तो चलता था पर बारिश के दौरान इन सड़कों की स्थिति खराब हो जाती है। ऐसे में अब पीडब्ल्यूडी की ओर से मेकेनिकल मेस्टिक किया जा रहा है, पर यह काम केवल बड़े सड़कों पर किया जायेगा।
इससे पहले बख्शी बागान में प्लास्टिक वेस्ट की सड़क बनी थी
छोटे सड़कों के लिए निगम की ओर से प्लास्टिक वेस्ट से सड़क बनाए जाने का निर्णय किया गया है। इस योजना के तहत वार्ड नंबर 130 के बख्शी बागान में प्लास्टिक वेस्ट की सड़क तैयार की गयी थी जो पिछले दो सालोें से बिना अतिरिक्त मरम्मत के वाहनों का भार सह रही है। इसकी सफलता को देखते हुए अब यह निर्णय लिया गया है कि महानगर की अन्य छोटी सड़कों को भी प्लास्टिक वेस्ट से तैयार किया जायेगा। शुक्रवार को टॉक टू मेयर कार्यक्रम के दौरान मेयर फिरहाद हकीम ने बताया कि कोलकाता ट्रैफिक पुलिस की ओर से दी गई 44 खराब सड़कों की मरम्मत दुर्गा पूजा के पहले पूरी कर ली जाएगी।
अब समझते हैं क्या है प्लास्टिक रोड?
ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने और पर्यावरण को अथाह नुकसान पहुंचाने के पीछे कई चीजें हैं। इनमें प्लास्टिक और उसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल भी एक बहुत बड़ी परेशानी है। भारत समेत कई देशों में इस पर बैन लगने के बावजूद लोग इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं। अब दुनिया की क्या, आप हमारी और अपनी बात ही ले लीजिए। हम में से कितने लोग ऐसे हैं जो वाकई में प्लास्टिक का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं करते हैं। आजकल पर्यावरण को बचाने की चिंता सिर्फ इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ही होती है। बस, अन्तराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस पर “सेव नेचर, सेव पृथ्वी” के नारे लगाकर हम जागरूक हो जाते हैं, लेकिन क्या हम निजी तौर पर इस खतरे से निजात पाने के लिए कुछ करते हैं? ये सवाल बेहद गंभीर है, जो हमें अपने आप से पूछने की जरूरत है। खैर, भारत के एक प्रो राजगोपालन वासुदेवन ने प्लास्टिक जैसी समस्या का बहुत ही लाजवाब हल निकाला है। दरअसल, उन्होंने प्लास्टिक के जरिए रोड बनाने की तकनीक की खोज की है। इससे प्लास्टिक से आसानी से निपटा जा सकता है। यह कैसी और क्या तकनीक है, इसके बारे में जानते हैं-
प्लास्टिक को नष्ट होने में लगते हैं 1000 साल
प्लास्टिक के प्रयोग से पर्यावरण पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है। जैसा कि हम जानते हैं प्लास्टिक नॉन-बायोडिग्रेडेबल होता है यानी यह मिट्टी, पानी आदि में जल्दी घुलकर खत्म नहीं होता है। यह वो ठोस कचरा है जिसे वातावरण में घुलने में 1000 साल तक का बहुत लम्बा वक्त लगता है, और साथ ही करीब एक टन प्लास्टिक से 10 लाख कैरी बैग बनते हैं। अब आप इसी से अंदाजा लग लीजिए कि यह किस हद तक पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है। जब कभी भी प्लास्टिक से छुटकारा पाने के सवाल किये जाते हैं तो आप अकसर क्या जवाब देते हैं? इस पर हममें से ज्यादातर लोगों का जवाब होता है पुनः प्रयोग या रीसायकल। लेकिन, राजगोपालन वासुदेवन ने एक ऐसी तकनीक खोज निकाली है, जिससे यह समस्या जड़ से भी खत्म की जा सकती है। उन्होंने प्लास्टिक से सड़क बनाने का बेहतर विकल्प पूरी दुनिया के सामने पेश किया है।
प्लास्टिक से रोड बनाने की ढूंढी तकनीक
राजगोपालन त्यागराजन यूनिवर्सिटी के डीन और केमिस्ट्री के प्रोफेसर हैं। उन्होंने अपने लैब में सड़क बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बिटुमेन और प्लास्टिक के मिश्रण पर एक्सपेरिमेंट किया। उनके शोध से इस बात का पता चला कि इन दोनों का मिश्रण बहुत अच्छा है और एक मजबूत सड़क बनाने में भी बहुत मददगार है। यह खोज न सिर्फ प्लास्टिक के अस्तित्व को पूरी तरह से खत्म कर सकती है बल्कि एक मजबूत रोड की परेशानी को भी सुलझाती है। सबसे बड़ी बात ये है कि यह प्रकृति के लिए नुकसानदायक प्लास्टिक जब सड़क बनाने के लिए इस्तेमाल होता है तो यह पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है।
सड़क बनाने की प्रक्रिया में पहले पत्थर को पीसा जाता है और फिर प्लास्टिक को छांट कर उसके छोटे टुकड़े करके इसमें बिटुमेन मिलाया जाता है। जिसके बाद यह मिश्रण सड़क पर फैलाने के लिए तैयार हो जाता है। यह अब तक तमिलनाडु, केरल समेत 11 राज्यों में बन चुका है। इसके अलावा, राजगोपालन के सुपरविजन में ही 1 लाख किलोमीटर तक बनाया जा चुका है।
प्लास्टिक रोड है इको-फ्रेंडली
प्लास्टिक रोड का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह प्लास्टिक से निजात पाने का यह सबसे अच्छा उपाय है। क्योंकि, जिस प्लास्टिक से निपटने के लिए हमें 1000 साल लग जाते थे अब उससे इस तरीके से पीछा छुड़ाया जा सकता है। साथ ही, प्लास्टिक रोड में 10 साल की मेन्टेनेन्स की अवधि है और इसमें पानी नहीं रिसता है जिससे पॉट होल्स यानी गड्ढों में पानी भरने की समस्या भी खत्म हो जाती है। माना जाता है कि ये सड़कें बाकी सड़कों से डेढ़ गुना ज्यादा टिकाऊ रहेंगी। साथ ही अगर एक किलोमीटर सड़क निर्माण में 800 किलो प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है। इसी कड़ी में तमिलनाडु सरकार ने 400 से 500 टन प्लास्टिक का इस्तेमाल 200 किलोमीटर सड़क बनाने में किया है। अगर इसी मात्रा में प्लास्टिक से रोड बनने लगे, तब आने वाले एक दशक में यह पूरी तरह से समाप्त भी हो सकता है।
इस काम के लिए प्रो वासुदेवन को पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। उनके इस योगदान ने वाकई में पृथ्वी के संरक्षण में बहुत बड़ा और अहम रोल अदा किया है।
उन्होंने अपनी इस एक्सपेरिमेंट का पेटेंट यानी एकाधिकार भी करवा लिया है। इस पेटेंट को उन्होंने फ्री में भारत सरकार को दे दिया है, ताकि पृथ्वी को बचाने के लिए यह कदम उठाया जा सके।
दुनियाभर में अपनाई जा रही है यह तकनीक
इस पहल की सभी देशों ने बहुत सराहना की और साथ ही कई देशों ने तो इसे अपने देश में अपनाना भी शुरू कर दिया है। इस लिस्ट में यूके और नेदरलैंड्स सबसे ऊपर हैं।
जहां तक बात है यूके की, तो इंजीनियर टोबी मेककर्टनी वहां की सबसे पहली प्लास्टिक रोड बना रहे हैं।
वहीं, नेदरलैंड्स भी इसे अपना रहा है। उन्होंने भी इन रोड्स का टेस्ट करना शुरू कर दिया है और इसके लिए उन्होंने समुद्री प्लास्टिक वेस्ट को इस्तेमाल करने का विचार किया है।
जहां दुनिया में बिलियन लीटर तेल से सड़कें बनती हैं, वहीं समुद्रों में ट्रिलियन से भी ज्यादा टुकड़ों में प्लास्टिक मौजूद है। ऐसे में, जो प्लास्टिक समुद्रों को प्रदूषित करने के साथ-साथ उसमें मौजूद जीवों को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
ऐसे में, नेदरलैंड्स ने इस विचार के साथ प्लास्टिक को ठिकाने लगाने में अपना कदम आगे बढ़ाया है। प्लास्टिक रोड बनाने का काम घाना ने भी शुरू कर दिया है। साथ ही, अमेरिका और भूटान भी इस आईडिया को अपनाने का विचार कर रहे हैं। मेककर्टनी के मुताबिक, ये प्लास्टिक की सड़कें काफी ज्यादा मजबूत हैं। यह काफी कम लागत में एक बहुत ही प्रभावशाली ‘ग्लू’ बनाती हैं जिससे मजबूती आम सड़कों की तुलना में 60 प्रतिशत ज्यादा बढ़ जाती है। मेककर्टनी ने अपने लैब टेस्ट के जरिए यह दावा किया है कि प्लास्टिक रोड आम सड़कों के मुकाबले तीन गुना ज्यादा लंबा टिकने समेत उनसे ज्यादा मजबूत हैं।