Electoral bonds: चुनावी बॉन्ड स्कीम पर चला सुप्रीम कोर्ट का डंडा | Sanmarg

Electoral bonds: चुनावी बॉन्ड स्कीम पर चला सुप्रीम कोर्ट का डंडा

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नई दिल्ली: चुनावी बॉन्ड पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड असंवैधानिक हैं और इस पूरे सिस्टम में पारदर्शिता नहीं है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि चुनावी बॉन्ड बेचने वाली बैंक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया(SBI) तीन हफ्ते में चुनाव आयोग के साथ सभी जानकारियां साझा करे। इसके लिए कोर्ट ने बैंक को तीन हफ्ते का समय दिया है।

RBI और चुनाव आयोग था बॉन्ड के खिलाफ

सुप्रीम कोर्ट ने बॉन्ड के बेचने पर भी रोक लगा दी है। चुनाव आयोग को निर्देश देते हुए SC ने कहा कि आयोग बैंक से जानकारी लेकर 31 मार्च तक सभी जानकारियां वेबसाइट पर साझा करे। बता दें कि चुनावी बॉन्ड को लेकर आयोग भी इसके खिलाफ था। वहीं केंद्रीय बैंक RBI का भी इसके खिलाफ रुख रहा है। वहीं, केंद्र सरकार का मानना था कि राजनीतिक दलों को चंदा देने का यह सही माध्यम था।

चुनावी बॉन्ड स्कीम क्या है?

केंद्र सरकार ने 2 जनवरी 2018 से इस योजना को लागू किया था। इस योजना के तहत भारत का कोई भी नागरिक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया(SBI) के ब्रांच से इसे खरीद सकता था। इसके साथ ही कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत ऐसे राजनीतिक दल चुनावी बॉन्ड के पात्र हैं। शर्त बस यही है कि उन्हें लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों।

दानकर्ता  को मिलती थी आयकर में 100% छूट

बॉन्ड के माध्यम से दानकर्ता को दान की राशि पर 100% आयकर की छूट मिलती थी। इसके साथ ही इस नियम में राजनीतिक दलों को इस बात से भी छूट दी गई थी कि वे दानकर्ता के नाम और पहचान को गुप्त रख सकते हैं। इसके साथ ही जिस भी दल को यह बॉन्ड मिले होते हैं, उन्हें वह एक तय समय के अंदर कैश कराना होता है। SBI इन बॉन्ड को 1,000, 10,000, 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ रुपए के समान बेचता है।

 

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