तुलसी विवाह 2024: भगवान विष्णु के साथ तुलसी का पवित्र बंधन, जानिए पूरी कहानी | Sanmarg

तुलसी विवाह 2024: भगवान विष्णु के साथ तुलसी का पवित्र बंधन, जानिए पूरी कहानी

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कोलकाता: तुलसी विवाह हिन्दू धर्म में एक विशेष पर्व है, जो खासकर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व मानसून के मौसम के समापन और हिंदू विवाह के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन देवी तुलसी और भगवान विष्णु (शालिग्राम) का विवाह संपन्न होता है। इस साल तुलसी विवाह 12 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा।

 

तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त 2024
तुलसी विवाह का विशेष मुहूर्त 12 नवंबर 2024 को शाम 5:29 बजे से लेकर रात 7:53 बजे तक रहेगा। इस अवधि में तुलसी विवाह की पूजा और व्रत का आयोजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

 

तुलसी और भगवान विष्णु का संबंध
तुलसी विवाह के पीछे एक दिलचस्प और पौराणिक कथा है, जो भगवान विष्णु और देवी तुलसी के संबंध को स्पष्ट करती है।

कहा जाता है कि एक समय की बात है, जब जलंधर नामक एक राक्षस ने देवताओं को बहुत परेशान किया। जलंधर की पत्नी वृंदा थी, जो एक पतिव्रता स्त्री थी और भगवान विष्णु की अटल भक्त भी थी। वृंदा के कारण जलंधर को युद्धों में हमेशा विजय प्राप्त होती थी। एक दिन जलंधर ने स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया, और सभी देवी-देवता भगवान विष्णु से मदद की प्रार्थना करने पहुंचे। भगवान विष्णु ने जलंधर को पराजित करने के लिए उसकी तरह रूप धारण किया और वृंदा के पास पहुंचे। वृंदा का पतिव्रता धर्म टूटने से जलंधर की सारी शक्तियां नष्ट हो गईं और वह युद्ध में मारा गया।

जब वृंदा को अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला, तो वह विलाप करने लगी। बाद में जब उसे यह पता चला कि भगवान विष्णु ने छल से उसका पतिव्रता धर्म भंग किया, तो क्रोधित होकर उसने विष्णु को श्राप दे दिया। उसने कहा, “जिस तरह आपने मुझे वियोग का कष्ट दिया, वैसे ही आपकी पत्नी का भी छल से हरण होगा और आप पत्थर के रूप में रूपांतरित हो जाएंगे, जिसे लोग शालीग्राम के रूप में पूजा करेंगे।”

वृंदा के श्राप के कारण भगवान विष्णु को श्रीराम के रूप में जन्म लेना पड़ा, और बाद में उन्हें सीता के वियोग का कष्ट सहना पड़ा। कहा जाता है कि वृंदा ने बाद में सती होने का निर्णय लिया। वृंदा की राख से एक पौधा उत्पन्न हुआ, जिसे भगवान विष्णु ने ‘तुलसी’ का नाम दिया। तब से भगवान विष्णु ने यह प्रण लिया कि वे तुलसी के बिना भोग ग्रहण नहीं करेंगे और उनका विवाह शालीग्राम से होगा।

 

तुलसी विवाह का आयोजन
तुलसी विवाह के दिन घरों और मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है और भगवान विष्णु के साथ उसका विवाह समारोह आयोजित किया जाता है। महिलाएं इस दिन व्रत करती हैं और तुलसी के पौधे को श्रृंगार करके उसकी पूजा करती हैं। इसके साथ ही शालीग्राम की पूजा भी की जाती है, क्योंकि यह भगवान विष्णु का रूप माना जाता है।

तुलसी विवाह का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है, क्योंकि यह न केवल भगवान विष्णु और तुलसी के मिलन का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय परिवारों में सुख, समृद्धि और पवित्रता की कामना का भी प्रतीक है।

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