Health News: मूड अच्छा रखिए और स्वस्थ रहिए | Sanmarg

Health News: मूड अच्छा रखिए और स्वस्थ रहिए

नई दिल्ली: वह मानसिक अवस्था जिसके अच्छे या बुरे होने पर व्यवहार, क्रिया और परिणाम में उसके अनुरूप अन्तर दिखाई पड़ने लगे, सामान्य बोलचाल की भाषा में ‘मूड’ कहलाती है। वैसे तो यह एक अस्थायी मनोदशा है पर जब तक रहती है, आदमी को सक्रिय या निष्क्रिय बनाए रहती है। सक्रियता, प्रफुल्लता, उत्साह, उमंग, स्फूर्ति उस मन:स्थिति या मूड का परिणाम है जिसमें वह सामान्य रूप में अच्छा होता है जबकि बुरी मन:स्थिति में अंतरंग निष्क्रिय, निस्तेज, निराश और निरुत्साह युक्त अवस्था में पड़ा रहता है। इस प्रकार यदि व्यक्ति विनोदपूर्ण स्थिति में दिखाई पड़े, तो यह कहा जा सकता है कि वह अच्छे मूड में है जबकि निराशापूर्ण दशा उसके खराब मूड को दर्शाती है।

मूड संबंधी वास्तविकता समझ लेने के उपरांत हर एक को यह प्रयत्न करना चाहिए कि वह हमेशा स्वस्थ मनोदशा में रहे। कभी वह गड़बड़ा भी जाए तो उसे तुरंत पूर्व स्थिति में लाने की कोशिश करनी चाहिए। जिसका मानसिक धरातल जितना लचीला होगा, वह उतनी ही जल्दी अपने इस प्रयास में सफल सिद्ध होगा। जो जितनी जल्दी सामान्य मानसिक स्थिति में वापस लौट आता है, मनोविज्ञान की दृष्टि से उसे उतना ही स्वस्थ मन वाला व्यक्ति कहा जा सकता है। लगातार खराब मूड में बने रहने से मन उसी का अभ्यस्त हो जाता है और व्यक्ति मानसिक विकारों का पुराना रोगी बन जाता है।

वर्तमान कठिन समय में जीवन की जटिलताएं इतनी बढ़ गई हैं कि व्यक्ति अधिकांश समय खराब मानसिक अवस्था में बना रहता है। आज से सौ वर्ष पहले मानव जीवन सरल था, अब वह वैसा नहीं रहा। यही कारण है कि तब लोग खेल और मनोरंजन की तरह जितनी सहजता से तनाव रहित उन्मुक्त जीवन गुजार लेते थे, वैसा आज संभव नहीं। जटिल जीवन में समस्याएं बढ़ती हैं और उस बढ़ोतरी का असर मन की स्वाभाविकता पर पड़े बिना नहीं रहता। इन दिनों मनुष्य की महत्त्वाकांक्षा इस कदर बढ़ी-चढ़ी है कि वह अधिकाधिक धन-दौलत जुटा लेने, प्रसिद्धि कमा लेने और वाहवाही लूट लेने की ही उधेड़बुन में हर घड़ी उलझा दिखाई पड़ता है। जीवन इसके अलावा भी कुछ है, उन्हें नहीं मालूम। बस यही अज्ञानता विकृत मनोदशा का कारण बनती है।

यह सच है कि व्यक्ति का रहन-सहन जितना निर्द्वन्द्व व निश्छल होगा, उतनी ही अनुकूल उसकी आंतरिक स्थिति होगी। इसके विपरीत जहां बनावटीपन, दिखावा, झूठी शान, प्रतिस्पर्धा होगी, वहां लोगों की मनोदशा उतनी ही असामान्य होती है। एक सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि भोले-भाले ग्रामीणों की तुलना में स्वभाव से अधिक चतुर-चालाक और कृत्रिमता अपनाने वाले शहरी लोगों का ‘मूड’ अपेक्षाकृत ज्यादा बुरी दशा में होता है।

मनोवैज्ञानिकों की सलाह है कि जब कभी मन: स्थिति या मूड खराब हो जाए तो उसे अपने हाल पर अपनी स्वाभाविक मानसिक प्रक्रिया द्वारा ठीक होने के लिए नहीं छोड़ देना चाहिए। इसमें समय ज्यादा लंबा लगता है और शारीरिक-मानसिक क्षति की आशंका बढ़ जाती है। शरीर के विभिन्न तंत्रों पर अनावश्यक दबाव पड़ने से अनेक प्रकार की असमानताएं सामने आने लगती हैं। इसलिए यथासंभव इससे उबरने का शीघ्र प्रयत्न करना चाहिए। विलंब करना अपने आप को हानि पहुंचाने के समान है।

यदि कभी ‘मूड’ खराब हो जाए तो अकेले पड़े रहने की अपेक्षा मित्रों के साथ हंसी-मजाक में स्वयं को व्यस्त रखें पर हां यह सावधानी रखें कि ‘मूड’ को चर्चा का विषय न बनाएं। एक कारगर तरीका भ्रमण भी है। प्रकृति के संपर्क से मन जितनी तीव्रता से प्रकृतस्थ होता है, उतनी तेजी से अन्य माध्यमों के सहारे नहीं हो सकता। इसलिए ऐसी स्थिति में पार्क, उपवन, बाग, उद्यान जैसा आसपास कोई सुलभ स्थल हो तो वहां जाकर मानसिक दशा को सुधारा जा सकता है। नियमित व्यायाम, खेल एवं किसी भी रचनात्मक कार्यों का सहारा लेकर भी मन की बुरी दशा को घटाया-मिटाया जा सकता है।

आवश्यकता से अधिक की आकांक्षा और स्तर से ज्यादा की चाह में प्रवृत्त न रहें तो मूड को खराब होने से बचाया जा सकता है। आध्यात्मिक जीवन-यापन करते हुए अपने सुनिश्चित लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने से भी मन को असीम शांति व संतुष्टि मिलती है। इसलिए बेहतर यही है कि वैसा जीवनक्रम अपनाया जाये, जिसमें अवसाद भरी मन: स्थिति में पड़ने की समस्त संभावनाएं ही निरस्त हो जाएं। जीवन पद्धति वही अच्छी है, जो हमें शांति और संतोष प्रदान करें एवं अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ाती चलें।

Visited 50 times, 1 visit(s) today
शेयर करे
0
0

Leave a Reply

ऊपर