क्यों मनाई जाती है शरद पुर्णिमा?
- भगवान कृष्ण का रास: इस दिन की धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान कृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीला की थी। इसी कारण इसे ‘रास पूर्णिमा’ भी कहा जाता है।
- माता लक्ष्मी का आगमन: मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं। इस अवसर पर विशेष पूजा-पाठ, स्नान, और दान करने से भक्तों को विशेष लाभ मिलता है।
- अक्षय पुण्य: शरद पूर्णिमा के दिन पूजा करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
शुभ मुहूर्त
- इस साल की तिथि: शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर 2024 को मनाई जाएगी।
- पूर्णिमा तिथि: इस दिन पूर्णिमा तिथि का आरंभ रात 8:40 बजे होगा और इसका समापन 17 अक्टूबर को शाम 4:55 बजे होगा।
- चंद्रोदय का समय: चंद्रमा इस दिन शाम 5:07 बजे उगता है, और उसकी उपासना प्रदोष काल में की जा सकती है।
चंद्रमा की रोशनी में खीर का भोग है अनिवार्य
शरद पूर्णिमा की रात को चांद की रोशनी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं के साथ चमकता है। इस रात चंद्रमा की किरणों में अमृतमयी तत्व होते हैं, जो शरीर और मन को शुद्ध करते हैं। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की रोशनी में रखी खीर खाने का विशेष महत्व है। इस रात को चंद्रमा की रोशनी में खीर का भोग लगाने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा की किरणों के प्रभाव से खीर का अमृत रस घुल जाता है। खीर को कांच, मिट्टी या चांदी के बर्तन में ही रखें, अन्य धातुओं का प्रयोग न करें। इस दिन घर में किसी भी तरह का झगड़ा या कलह नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे घर में दरिद्रता आती है।
शरद पूर्णिमा का यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह प्रेम, एकता, और समर्पण का भी संदेश देता है। इस दिन की विशेष पूजा और खीर का भोग हमारे जीवन में सुख-समृद्धि लाने का एक साधन माना जाता है।