संगीत सुनना है बेहद फायदेमंद, कई रोगों का करता है उपचार | Sanmarg

संगीत सुनना है बेहद फायदेमंद, कई रोगों का करता है उपचार

कोलकाता: योगियों के मुताबिक ‘संगीत आत्मा की उन्नति का सबसे अच्छा साधन है।’ एकाग्र मन:स्थिति से जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलताएं अर्जित की जा सकती हैं। संगीत मनुष्य की क्रियाशक्ति को बढ़ाता है और आत्मिक आनंद की अनुभूति है। संगीत के प्रभावों के अनुसंधान में रत ऋषियों को इसकी शक्तियों-सिद्धियों का इतना विराट ज्ञान उपलब्ध हुआ कि उसके वर्णन करने के लिए ‘सामवेद’ नामक एक अलग ही ग्रंथ की रचना करनी पड़ी। अब तो पाश्चात्य विद्धानों और वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि मानवीय गुणों और आत्मिक आनंद को जीवित रखना है तो मनुष्य स्वयं को गायन से जोड़े रहे। उन्होंने संगीत की तुलना प्रेम से की है। सामवेद के अनुसार उचित औषधियों के साथ-साथ संगीत को जोड़ से अत्यधिक लाभ मिलता है।

 

दबी हुई शक्तियों को जगाने में सहायक 

वैदिक काल में संगीत के रहस्यमय विज्ञान के ज्ञाता, मंत्र गायन, भाव मुद्राओं की रसानुभूतियों के आधार पर अपने अंतर में दबी हुई शक्तियों को जगाते थे और सम्पर्क में आने वाले प्राणी मात्र की व्यथा-वेदना हरते थे।

 

किस रोग के लिए कौन सा राग 

हृदय रोग के लिए राग भैरवी, शिवरंजनी, अल्हैया बिलावल, मानसिक रोगों के लिए ललित एवं केदार राग को बांसुरी पर सुनाना काफी हितकारी माना गया है। दमा और खून की कमी वाली बीमारियों के लिए राग श्री, केदार, कल्याण, पूरिया, प्रियदर्शिनी, एवं सामवेद का गायन लाभदायी है। उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए रोग हिण्डोल, पूरिया, कौसी कानड़ रोग बहुत ही हितकर माना गया है। कैंसर के लिए राग सिद्ध भैरवी, नर्वस ब्रेकडाउन के लिए अहीर भैरव राग, चर्म रोग के लिए पूरिया, मेघ मल्हार, राग मुल्तानी, मधुवन्ती बहुत ही लाभदायक होता है। मधुमेह हेतु जौनपुरी, जयजयवन्ती, उच्चताप (बुखार) में मालकोस बसन्त बहार जैसे राग बड़े ही उपयोगी हैं। इसी तरह कैंसर, खून बहना, आधा सिर का दर्द, उच्च अम्लता, पेप्टिक अल्सर, इनसोमेनिया, ल्यूकोरिया जैसे भी अनेक ऐसे रोग हैं जिन पर संगीत का अचूक प्रयोग सफल रहा है। इस संबंध में जड़ी-बूटी चिकित्सा, खान-पान, आहार-व्यवहार का नियंत्रण सम्मिलित है।

 

संगीत का सीधा सम्बंध भाव संवेदना से : संगीत का सीधा सीधा संबंध भाव संवेदना से है। संगीत की रसमयी धारा शरीर स्थित अनेक प्रकार के हारमोनों को उत्तेजित करती हैं और उनके उचित रिसावों में सहायक होती है। अनेक परीक्षणों में यह देखा गया है कि संगीत की लय से प्रेरित होकर कुछ गायें अधिक दूध देने लगती हैं। बल्ब के मध्यम प्रकाश में जौनपुरी एवं मालकोस बसंत बहार जैसे वैदिक संगीतों के धुन में की गई संभोगीय प्रक्रियाओं में गर्भधारण की अत्यधिक संभावना रहती है।

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