शहर के बाहर एक विशाल पार्क था। उसी के साथ एक गहरी नदी तीव्र वेग से बहती थी। शाम के समय बच्चे, बूढ़े और जवान सभी पार्क में बिछी हरी-हरी दूब, क्यारियों में खिले रंग-बिरंगे फूल तरह-तरह के पेड़, लताएं और फव्वारों के बीच बैठकर फुरसत के क्षणों का आनंद लूटते थे।
एक दिन पार्क में दो बच्चे खेलते-कूदते नदी के तट पर पहुंच गये। शरारत तो बच्चों का स्वभाव है, दोनों एक-दूसरे के साथ धक्का-मुक्की करते हुए नदी में जा गिरे। नदी में बहते-डूबते बच्चों पर मां की निगाह पड़ी और वह एकदम बदहवास-सी पागलों की तरह चिल्लाने लगी – अरे, कोई मेरे बच्चों को बचाओ। देखो, मेरे दोनों बच्चे डूब रहे हैं, कोई तो सहायता करो।
स्त्री की चिल्लाने की आवाज सुनकर वहां भीड़ इकट्ठा हो गई। नदी गहरी थी, किसी की भी नदी में कूदने की हिम्मत नहीं हो रही थी। सब मूकदर्शक बने खड़े थे।
मां हाथ पीट-पीटकर चिल्ला रही थी। वह स्वयं ही दौड़कर नदी में कूदने वाली थी कि अचानक कहीं से एक लड़का दौड़ता हुआ आया, उसने बच्चों को डूबते हुए देखा तो प्राणों की परवाह किए बिना उसने तुरंत नदी में छलांग लगा दी।
वह तीर की तरह तैर कर, डूबते बच्चों के पास पहुंचा। उन्हें पकड़ कर पीठ पर लादा और तैरते हुए बच्चों को सुरक्षित किनारे पर ले आया। सभी दर्शक उसके उदार साहस को देखकर अचम्भित रह गये। सभी मुक्त कंठ से लड़के की प्रशंसा करते हुए कह रहे थे- ‘यह तो कोई देवदूत है जो अचानक प्रकट होकर बच्चों की रक्षा के लिए आ गया।’
बच्चों की मां ने रोते-रोते लड़के को सैकड़ों दुआएं दे डाली। उसने कई बार प्यार से उसका माथा चूमा।
इस साहसी और वीर बालक का जन्म एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। इस बालक में आरम्भ से ही उदारता, साहसिकता और परोपकारिता कूट-कूट कर भरी हुई थी। वह साहसी तो था ही, साथ ही वह सादगी पसंद, सत्यवादी और न्यायप्रिय भी था। अपने इन्हीं गुणों के कारण वह हमेशा प्रगति के पथ पर आगे ही आगे बढ़ता रहा और एक दिन अमेरिका का राष्ट्रपति बना।
जानते हो यह लड़का कौन था? इस लड़के का नाम था जार्ज वाशिंगटन।
जिस मनुष्य में सादगी हो, सच्चाई हो, साहस और धैर्य हो, मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों से जूझने का दिल हो, वह महापुरुष तो बनेगा ही।
(परशुराम संबल, उर्वशी)
साहसी बालक
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