नई दिल्ली: सोमवार (9 सितंबर) को कच्चे तेल की कीमतों में जबरदस्त बढ़ोतरी दर्ज की गई। इसकी वजह इजरायल और हमास के आतंकियों के बीच संघर्ष है। जिसके कारण मिडिल-ईस्ट से उत्पादन में बाधा आने की संभावना है। इसके चलते कच्चे तेल की कीमतों में 4 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। ब्रेंट क्रूड 88.41 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुकी है।
ग्लोबल सप्लाई पर पड़ेगा असर ?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी तेल के लिए बेंचमार्क वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) बढ़कर 86 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गया। जबकि ब्रेंट क्रूड की कीमत भी शुरुआती एशियाई कारोबार में बढ़ी। बता दें कि इजराइल और फिलिस्तीनी क्षेत्र तेल उत्पादक नहीं हैं, लेकिन मिडिल ईस्ट एरिया ग्लोबल सप्लाई का लगभग एक तिहाई हिस्सा है। पश्चिमी देशों ने हमलों की निंदा की। इसके अलावा बताया जा रहा है कि ईरान पर लगे आरोपों के अनुसार अगर युद्ध में किसी तरह ईरान की एंट्री होती है तो वैश्विक तेल आपूर्ति 3 फीसदी तक कम हो जाएगी।
कच्चे तेल की बढ़ती कीमत भारत की मुश्किलें बढ़ाएगी
1) कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से भारत के लिए इसका क्रूड इंपोर्ट करना महंगा होगा। क्योंकि भारत अपनी जरूरतों का करीब 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। इससे आने वाले दिनों में तेल कंपनियां पेट्रोल और डीजल महंगा कर सकती हैं। इसके साथ ही माल ढुलाई भी महंगा होगा।
2) महंगे क्रूड का सीधा असर उन कंपनियों और सेक्टर्स पर होगा जहां इसका इस्तेमाल होता है। क्योंकि कंपनियां प्रोडक्शन या अन्य कामों के लिए रॉ मटेरियल के रूप में इसका इस्तेमाल करती हैं। इसमें पेंट कंपनियां, बैटरी बनाने वाली कंपनियां, टायर कंपनियां, FMCG कंपनियां, एविएशन कंपनियां, सीमेंट कंपनियां, लॉजिस्टिक कंपनियां, स्टील कंपनियां शामिल हैं।