कोलकाता: वास्तव में जिस व्यक्ति के जीवन में विनोद का कोई स्थान नहीं, उसे दु:खी होने के लिए कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता। वह बिना प्रयास किए ही नित्य निरंतर दु:खी रह सकता है। एक पल की मुस्कुराहट अथवा एक भरपूर ठहाका जीवन की दशा बदलने में सक्षम है। मानव शरीर वस्तुत: एक प्रयोगशाला की तरह है जिसमें हर क्षण निरंतर जीव-रासायनिक (बॉयोकेमिकल) तथा विद्युत-चुम्बकीय (इलैक्ट्रो-मैग्नेटिक) परिवर्तन होते रहते हैं। इन्हीं विभिन्न परिवर्तनों के फलस्वरूप मनुष्य को प्रसन्नता अथवा पीड़ा की अनुभूति होती है। मन की इसमें निर्णायक भूमिका होती है।हमारी मनोदशा के अनुसार ही हमारे शरीर की जीव-रासायनिक संरचना प्रभावित होती है। सकारात्मक मनोदशा का अच्छा तथा नकारात्मक मनोदशा का बुरा प्रभाव हमारे शरीर की जीव-रासायनिक संरचना पर पड़ता है। हँसना एक ऐसी प्रक्रिया है जो मानव शरीर पर केवल सकारात्मक प्रभाव डालती है क्योंकि हँसने की प्रक्रि या में मन की भूमिका गौण या नगण्य हो जाती है। हँसने वाला व्यक्ति तत्क्षण ‘अ-मन’ अर्थात ‘नो थॉट स्टेट’ की अवस्था में पहुँच जाता है जो ध्यान की ही अवस्था होती है। यहाँ प्रश्न उठ सकता है कि ‘अ-मन’ की अवस्था में हँसी का नकारात्मक प्रभाव क्यों नहीं पड़ता ? कारण स्पष्ट है कि ‘अ-मन’ की अवस्था में हम सुख-दु:ख, राग-द्वेष आदि परस्पर विरोधी भावनाओं से पूर्णत: मुक्त हो जाते हैं। ऐसी अवस्था परमानंद की अवस्था होती है अत: नकारात्मक प्रभाव पड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता।वैसे भी हँसने का संबंध प्रसन्नता से है। जब हम प्रसन्न होते हैं तभी हँसते हैं। ऐसा हमारी सहस्राब्दियों की कंडीशनिंग के कारण भी होता है अत: यदि हम बिना बात भी हंसेंगे तो स्वाभाविक रूप से प्रसन्नता की प्राप्ति होगी और प्रसन्नता की मनोदशा में शरीर की जीव-रासायनिक संरचना में स्वास्थ्य के अनुकूल परिवर्तन होगा।योग और हास्य’योगसूत्र’ में महर्षि पतंजलि ने योग की जो परिभाषा दी है वह है ‘योग: चित्तवृत्ति निरोध:’ अर्थात् चित्त वृत्तियों पर नियंत्रण ही योग है।
खिलखिलाकर हँसें…
हास्य में विशेष रूप से खिलखिलाकर हँसने अथवा ज़ोरदार ठहाका लगाने की अवस्था में हम अपने मन की चंचलता पर पूर्ण रूप से नियंत्रण कर पाते हैं चाहे वह क्षणिक ही क्यों न हो।मन की चंचलता पर वह क्षणिक नियंत्रण एक अद्वितीय घटना है। मनुष्य के लिए, उसके अच्छे स्वास्थ्य के लिए एक लाभप्रद स्थिति है। हास्य वास्तव में इंस्टेंट योग की अवस्था है। इन क्षणों की जितनी अधिक पुनरावृत्ति होगी, उतना ही हम योगमय जीवन के निकट होते चले जाएंगे। योगाभ्यास में हम क्रम से चलते हैं। पहले यम और नियम का पालन करना सीखते हैं, फिर विभिन्न योगासनों और प्राणायाम के विभिन्न प्रकारों का अभ्यास करते हैं। तत्पश्चात् प्रत्याहार और धारणा की अवस्थाओं से गुजऱते हुए ध्यान की अवस्था में पहुँच जाते हैं लेेकिन एक ज़ोरदार ठहाका अथवा अट्टहास हमें सीधे ध्यानावस्था के निकट ले जाकर छोड़ देता है। हँसी एक क्षणिक सी घटना है लेकिन शरीर और मन पर इसका प्रभाव निरंतर आधा-पौना घंटे तक बना रहता है। हँसने से व्यायाम के लाभ भी मिलते हैं। ज़ोर से हँसने पर श्वास-प्रक्रिया भी प्रभावित होती है अत: योगासन और प्राणायाम, दोनों का अभ्यास इस क्रिया में हो जाता है। हँसने से शरीर में अतिरिक्त कैलोरीज़ के ख़र्च हो जाने से वजऩ को नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है। पूरे शरीर में रक्त-प्रवाह बढ़ जाने से शरीर में तथा विशेष रूप से चेहरे की मांसपेशियों में ताजग़ी उत्पन्न होती है। योग एक सम्पूर्ण उपचार पद्धति है। हास्य भी किसी प्रकार योग से कम नहीं बैठता, इसलिए हास्य द्वारा चिकित्सा को ‘हास्य योग’ से अभिहित किया जाता है। एक उपचारक प्रक्रिया है हास्यहँसना एक संपूर्ण व्यायाम है जिससे शरीर की सभी नाड़ियां खुलती हैं तथा शरीर की थकावट दूर होकर ताजग़ी उत्पन्न होती है। खुलकर हँसने से फेफड़ों, गले और मुँह की अच्छी कसरत हो जाती है।
पेट एवं छाती के स्नायु मजबूत होते हैं। डायफ्राम मज़बूत होता है तथा इससे मुँह, गले तथा फेफड़ों संबंधी व्याधियों के उपचार में मदद मिलती है।हँसने से रक्त संचार की गति तीव्र होती है जिससे खून में ऑक्सीजन की मात्र बढ़ जाती है। इस पूरी प्रक्रिया से चेहरे पर रौनक़ आ जाती है। जो जितना अधिक हँसता-हँसाता है उसका चेहरा उतना ही अधिक दमकता है।शरीर में जितनी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन का अवशोषण होता है, उतनी ही अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है और जितनी अधिक ऊर्जा उत्पन्न होगी, हम उतने ही अधिक स्वस्थ तथा रोगमुक्त होंगे। इस प्रकार हास्य जीवन का उपचारक एवं पोषक तत्व है और इसे जीवन का रस कहा जा सकता है। हास्य द्वारा हमारे शरीर की जीव-रासायनिक संरचना में परिवर्तन आता है। हँसने से तनाव उत्पन्न करने वाले हार्मोन कार्टिसोल तथा एपिनप्राइन के स्तर में कमी आती है जिससे शरीर तनावमुक्त हो जाता है और तनाव मुक्ति का अर्थ है स्वास्थ्य। इसके अतिरिक्त हँसने से शरीर में एण्डोर्फिन नामक हार्मोन की मात्र में वृद्धि होती है जो शरीर के लिए स्वाभाविक रूप से दर्द निवारक और रोग अवरोधक का काम करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हँसने से शरीर के लिए उपयोगी हार्मोंस का उत्सर्जन प्रारंभ हो जाता है जो हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी हैं। इस प्रकार हँसना अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक और पर्याय है।