कोलकाता : न्यूजलपाईगुड़ी से 300 किलोमीटर दूर फांसीदेवा में कंचनजंघा एक्सप्रेस दुर्घटना की गिनती बड़ी रेल दुर्घटनाओं में की जा रही है। इस दर्दनाक हादसे में 8 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। इसके अलावा कई लोग घायल भी हुए हैं। एक तरफ जहां देश में इंफ्रास्ट्रक्चर की मजबूत बुनियाद के माध्यम से दुनिया भर के बड़े इन्वेस्टर्स को आकर्षित करने का काम किया जा रहा है। वहीं इस तरह के हादसे कई सवाल खड़े कर रहे हैं। इस बड़ी दुर्घटना को रोका जा सकता था। भारत में कवच सिस्टम लाया गया है जो कि ट्रेनों को हादसे का शिकार होने से बचाती है। ऐसे में दिल्ली-गुवाहाटी रूट पर यह सिस्टम था ही ही नहीं। इसके कारण इतना बड़ा हादसा हुआ। इसके साथ ही बताया जा रहा है कि कंचनजंघा एक्सप्रेस में लगे कोच सभी आईसीएफ के थे जो कि काफी पुराने हैं। इसके अलावा सिग्नल ओवरशूट भी इस हादसे की मुख्य वजह मानी जा रही है।
एलएचबी कोच से दुर्घटना की आशंका कम : रेलवे की ओर से अब अधिकांश ट्रेनों में एलएचबी कोच लगाए जा रहे है। परंतु उक्त एक्सप्रेस में यह कोच नहीं होने की वजह से दुर्घटना भीषण हो गया। रेलवे का दावा है कि एलएचबी कोच से ट्रेनों की स्पीड बढ़ती है। एलएचबी में डिस्क ब्रेक का प्रयोग किया जाता है। ट्रेन ब्रेक लगाने पर कुछ ही दूरी पर रुक जाती है। इसी तरह एलएचबी कोच का सस्पेंशन आईसीएफ से काफी अच्छा होता है। एलएचबी कोच में 60 डेसीबल तक की आवाज होती है। कोच में डबल सस्पेंशन है। इसमें बीच वाले सस्पेंशन में हाइड्रोलिक होता है। साथ ही एक्स्ट्रा सस्पेंशन भी दिया गया है। नए एलएचबी कोच से ट्रेनों की स्पीड करीब 160 किमी प्रतिघंटे है।
क्या होता है सिग्नल ओवरशूट : दरअसल, ऐसा कहा जाता है कि एक ट्रेन ने सिग्नल को “ओवरशूट” कर दिया है। इसे भारतीय रेल के शब्दों में तकनीकी रूप से ‘सिग्नल पासिंग एट डेंजर’ या एसपीएडी कहा जाता है। ऐसा तब होता है जब ड्राइवर उसे रुकने का संकेत देने वाले लाल सिग्नल को नजरअंदाज कर देता है। इस बारे में रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी बताया कि लोको पायलट या उसके सहायक द्वारा रेड सिग्नल को पार कर जाना। सिग्नल को इग्नोर कर देने की वजह से ट्रेन हादसे होते हैंं। इसकी भी कई वजहें हो सकती हैं, जैसे की ड्राइवर का पूरा आराम करके नहीं आना। थकान या नींद पूरी न होने की वजह से झपकी लगना। सिग्नल को अनदेखा कर उसे पार कर जाना। ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ ड्राइवर की गलती हो। सिग्नल के अंदर खराबी आ जाना। लाइन पर पत्थर, लोहा या अन्य ठोस चीज का होना, जिससे ट्रेन का पटरी से उतर जाना संभावित खतरे होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि सिग्नलिंग, रनिंग, इंजीनियरिंग और ट्रैफिक डिर्पाटमेंट रेलों को चलाने की मुख्य तौर पर जिम्मेदारी निभाते हैं। उनके अनुसार, हालांकि जब तक इंक्वायरी नहीं होती, तब तक किसी अंतिम विश्लेषण पर नहीं जाया जा सकता।
क्या कवच प्रोटेक्शन सिस्टम से नहीं होता हादसा
कवच एक खास तरह का ऑटोमेटिक प्रोटेक्शन सिस्टम है। कवच प्रोटेक्शन तकनीक को रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन की मदद से बनाया गया है। इस तकनीक का नाम पहले ट्रेन कोलिसन अवोयडेंस सिस्टम (टीसीएएस) था। कवच सिस्टम में हाई फ्रीक्वेंसी के रेडियो कम्युनिकेशन का इस्तेमाल किया जाता है। कवच प्रणाली तीन स्थितियों में काम करती है – हेड ऑन टकराव, रियर एंड टकराव, सिग्नल खतरा। रेलवे का दावा है कि अगर ट्रेन चलाते समय लोको पायलट किसी सिग्नल को जंप या कोई गलती करता है। ऐसे में कवच प्रणाली तुरंत एक्टिवेट हो जाती है और ट्रेन के ब्रेक कंट्रोल कर लेती है। एक लाइन में आनेवाले ट्रेनों को टक्कर से बचाया जा सकता है।