चैत्र एवं फागुन के महीनों की आहट के साथ ही होली | Sanmarg

चैत्र एवं फागुन के महीनों की आहट के साथ ही होली

चैत्र एवं फागुन के महीनों की आहट के साथ ही होली के रंग सिर चढ़कर बोलने लगते हैं। और वातावरण में

चूनर भीगी, चोली भीगी, भीग गया हर अंग,

प्रीतम देखें दूर खड़े, देवर खेलै रंग,

कि होली आई रे!

गोरी नाचे ठुमक -ठुमक बजते चंग और ढोल

देख-देख कर सासू कुढ़ती, ननदी मारे बोल,

कि होली आई रे…

जैसे गीतों के स्वर घुल जाते हैं।

● मस्ती व प्रेम के रंग ः होली का पर्व है ही ऐसा, जो गृहस्थ ही नहीं, योगी, ध्यानी और ज्ञानीजनों के मन में भी प्रेम का रस घोल देता है। यदि चैत्र व फाल्गुन मास मस्ती के महीने कहे जाते हैं, तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण होली का त्यौहार ही है।

● रंगों की बौछार ः चैत्र पूर्णिमा के दिन, जब चांद यौवन पर होता है, तब अपने प्रीतम के दर्शन को तरसती किसी विरहिन ने सजी-धजी प्रकृति को देखकर, सिसकारी भरी होगी, तो संभवत: प्रकृति ने होली के रूप में उसे शीतलता देने के लिए रंगों की बौछार की होगी, शायद तब से ही चलन में आया होगा सराबोर कर देने वाला होली व फाग का पर्व।

● बदलाव की बयार ः हालांकि अन्य त्यौहारों की तरह होलिका पर्व का जश्न भी अब मुख्य रूप से उन्हीं अंचलों में अपने असली रूप में रह गया है, जहां अभी भौतिक प्रगति के पांव पूरी तरह से नहीं जमे हैं। शहरों से होलिका पर्व का प्राचीन सांस्कृतिक स्वरूप लगभग गायब हो गया है, लेकिन गांवों व दूरदराज के क्षेत्रों में आज भी होलिका पर्व की मस्ती व धूम बाकी है।

● कीचड़ होली से होला महल्ला तक…ः अनेक लोकगीत होली पर झूमने को विवश कर देते हैं। लोकगीत ही नहीं, फिल्मी गीत भी होली पर रंग बिखेरने आते हैं-

आज भी बृज की लठ्ठमार होली, बस्तर की पत्थरमार होली, हरियाणा की कीचड़ और कोड़ामार होली, राजस्थान की गाढ़े गुलाबी रंग की ‘गैर’, मथुरा की राधाकृष्ण होली व श्री आनन्दपुर साहिब का होलामहल्ला मन को गहराइयों तक छू जाता है। आज के दिन से ही राजस्थान में गणगौर पूजा की शुरुआत भी होती है।

● होली पूजन, पाप भस्म ः उत्तर भारत के गांवों में न केवल होली का पूजन होता है वरन् रात में होली के गीत भी गाए जाते हैं। होली को सूत की डोर से बांधकर हल्दी, बेर, बताशे आदि से पूजा जाता है। रात्रि में शुभ लग्न में होलिका दहन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होलिका के दहन करने से मनुष्य के पाप उसकी अग्नि में जलकर भस्म हो जाते हैं। वहीं नए अनाज की प्रथम आहुति अग्निदेव को अर्पित करते हैं। होली के दिन हर तरफ रंग, गुलाल, अबीर की धमक रहती है। गांवों में नई-नवेली दुल्हन को रंगने की होड़ तो मचती ही है, देवर-भाभी की ठिठोली भी देखते बनती है और जगह-जगह लोक गीत के मधुर स्वर सुनाई देते हैं।

● होली के दिन दिल खिल जाते हैं,

रंगों में रंग रंग मिल जाते हैं… ।

● रंग बरसे भीगे चूनर वाली, रंग बरसे.

● जा रे जा दीवाने तू, होली के बहाने तू ,

छेड़ न मुझे मुझे बेशरम…

● होली आई रे कन्हाई रंग बरसे ,

सुना दे मोहे बांसुरिया

जैसे फिल्मी गीत भी होली पर सदाबहार गानों के रूप में याद किए जाते हैं ।

● जात-पात के टूटें बंधन ः आज के दिन जाति, धर्म के सारे बंधन टूट जाते हैं। बिना किसी भेदभाव के रंगों से सराबोर करने की परंपरा जिंदा है, तो यह होली का ही कमाल है। यह रंजिश व वैर के भाव को धो डालने वाला पर्व भी है।

होली देश विदेश में

होली जैसे त्योहार विदेशों में भी मनाए जाते हैं, हॉलैंड में टमाटर मारकर, तो डेनमार्क में फूलों का उबटन मलकर जीवन में रंगों का महत्व प्रतिपादित किया जाता है। नेपाल, मॉरीशस, फिजी, थाइलैंड व गायना में तो होली व फाग के पर्व बिल्कुल भारत की तरह ही मनाए जाते हैं।

सावधानी भी जरूरी

थोड़ी सावधानी जरूर रखिए और कहीं कुछ ऐसा न करिए, न कहिए कि कोई आहत हो, क्योंकि होली खुशियां बांटने का त्योहार है। इसमें मनोविकार और मनमुटाव जलाने से ही होली सार्थक होगी।

 

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