अंगुलिमाल बौद्ध भिक्षु बन गया | Sanmarg

अंगुलिमाल बौद्ध भिक्षु बन गया

जिस समय गौतम बुद्ध मत का प्रचार कर रहे थे, उसी समय एक अत्यंत क्रूर एवं भयंकर डाकू अंगुलिमाल भी हुआ। वह जंगल में भटके हुए लोगों को लूटता ही नहीं अपितु उनकी हत्या कर के उनकी अंगुलियों को काट कर उनकी माला बनाकर पहन लेता था। अंगुलियों की माला पहनने के कारण उसका नाम अंगुलिमाल पड़ गया था।
लोग उसके नाम से कांपते थे। वह जिस जंगल में रहता था, उसी से होकर बुद्ध भी जा रहे थे। एक दिन वह डाकू उनके सामने आ गया। उसका भयंकर रूप देखकर बुद्ध के शिष्य तो भयभीत हो गए पर बुद्ध बिलकुल नहीं डरे। उनका अपूर्व तेज देखकर वह डाकू हतप्रभ हो गया। जब वह बुद्ध के सामने आया तो उन्होंने पूछा कि वह क्या चाहता है? उसने उत्तर दिया-तुम सबकी हत्या। बुद्ध ने कहा कि ठीक है। हम लोग भागेंगे नहीं। तुम हम सबकी हत्या करने के पूर्व सामने वृक्ष की एक डाल काट लाओ।
वह गया और डाल काट लाया। बुद्ध ने कहा-‘ठीक है, अब तुम इसे उसी वृक्ष से जोड़ दो।’ उसने कहा कि यह सर्वथा असंभव है। मैं इसे जोड़ नहीं सकता। बुद्ध ने कहा, ‘जिस डाली को तुम जोड़ नहीं सकते हो उसे काट कर अलग क्यों करते हो। जो काटता है उसमें जोड़ने की भी शक्ति होनी चाहिए। इसी प्रकार तुम लोगों की हत्या तो कर सकते हो पर उन्हें जीवन दान नहीं दे सकते।’
बुद्ध की धर्म भरी वाणी उसके अंतर्मन को बेध गई। उसने अपना खड्ग फेंक दिया और उनके चरणों में गिर गया। उसने अश्रु बहाते हुए कहा-‘महाराज आपने तो मेरी आँखें खोल दी और आज से मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि यह क्रूर कर्म कभी नहीं करूंगा। अपने बुरे कर्मों का प्रायश्चित करूंगा। मुझे अपना शिष्य बना लीजिए। ‘
और उस दिन से मात्र एक वाक्य के प्रभाव से वह बौद्ध भिक्षु बन गया। (उर्वशी)

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