Ex PM डॉ. मनमोहन सिंह का निधन | Sanmarg

Ex PM डॉ. मनमोहन सिंह का निधन

नई दिल्ली ः भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह (92 साल) का गुरुवार रात निधन हो गया। उन्हें सांस लेने में तकलीफ के बाद रात को उन्हें दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया गया था। उनकी हालत गंभीर थी। उन्होंने रात करीब 10 बजे अंतिम सांस ली। देर रात एम्स ने आधिकारिक बयान जारी कर बताया कि डॉ. सिंह ने 9 बजकर 51 मिनट पर अंतिम सांस ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अनेक नेताओं ने डॉ. सिंह के निधन पर शोक जताया।

कांग्रेस ने सारे कार्यक्रम रद्द किए

डॉ. सिंह के स्वास्‍थ्य को लेकर उसी समय आशंका गहराने लगी थी जब कांग्रेस ने कांग्रेस कार्य समिति ने अपनी बैठक के बाद कर्नाटक में शुक्रवार को प्रस्तावित रैली रद्द करने की घोषणा कर दी। उसके तुरंत बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी दिल्ली के लिए रवाना हो गए। यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी और उनकी बेटी प्रियंका वाड्रा एवं दामाद रॉबर्ट वाड्रा भी एम्स पहुंच गए थे। कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद और रॉबर्ट वाड्रा ने डॉ. सिंह के निधन की पुष्टि की। केंद्रीय स्वास्‍थ्य मंत्री जेपी नड्डा भी एम्स पहुंच गए।

इसी साल 3 अप्रैल को खत्म हुआ था राज्यसभा कार्यकाल

मनमोहन सिंह 3 अप्रैल को राज्यसभा से रिटायर हुए थे। वे 1991 में पहली बार असम से राज्यसभा पहुंचे थे। तब से करीब 33 साल तक वे राज्यसभा के सदस्य रहे। छठी और आखिरी बार वे 2019 में राजस्थान से राज्यसभा सांसद बने थे। मनमोहन सिंह के रिटायरमेंट पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उन्हें खत भी लिखा था। अपनी चिट्ठी में खरगे ने लिखा था कि- अब आप सक्रिय राजनीति में नहीं होंगे, लेकिन आपकी आवाज जनता के लिए लगातार उठती रहेगी। संसद को आपके ज्ञान और अनुभव की कमी खलेगी। मनमोहन सिंह की सीट पर कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी पहली बार राज्यसभा पहुंची थीं। 20 फरवरी को उन्हें राज्यसभा के लिए निर्विरोध चुना गया था।

आर्थिक सुधारों के जनक

डॉ. सिंह को भारत के आर्थिक सुधारों का जनक माना जाता है, क्योंकि जब भारत कठिन दौर से गुजर रहा था, उस समय 1991 में उन्होंने ही देश की अर्थव्यवस्‍था को पूरे विश्व के लिए खोला था। इसी के बाद भारत को कई अंतरराष्ट्रीय संस्‍थाओं से ऋण के रूप में भारी पैसा मिला, जिससे भारत तेजी से आगे बढ़ पाया। जब 2008 में परमाणु संधि की बात आई, उस समय भी वामपंथी दलों की सरकार गिराने की धमकी के बावजूद वह झुके नहीं थे और उन्होंने अमेरिका के साथ परमाणु समझौता कर लिया था।

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