नयी दिल्लीः सरकार ने ग्रीन स्टील की परिभाषा तय करते हुए इंडस्ट्री से तैयार उत्पादों पर प्रति टन कार्बन उत्सर्जन को 2.2 टन के स्तर से नीचे लाने के लिए कदम उठाने को कहा है। केंद्रीय इस्पात मंत्री एचडी कुमारस्वामी ने ‘ग्रीन स्टील का क्लासिफिकेशन’ जारी किया है, जिसमें उत्पादन प्रक्रिया के दौरान उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) की मात्रा के आधार पर इस्पात उत्पादों की स्टार रेटिंग देने के मानक तय किए गए हैं। नया ढांचा इस्पात उत्पादन को कार्बन मुक्त करने और मूल्य शृंखला में ग्रीन सिस्टम को प्रोत्साहित करने के प्रयासों में मार्गदर्शन करेगा। इस्पात सचिव संदीप पौंड्रिक ने कहा कि ग्रीन स्टील की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं होने से विभिन्न संस्थान अलग-अलग पद्धतियों का इस्तेमाल करते रहे हैं। कार्यबल की सिफारिशों और मंत्रालय की जांच के आधार पर भारतीय संदर्भ में ग्रीन स्टील के वर्गीकरण के मानक जारी किए हैं।’
कब माना जाएगा ग्रीन स्टीलः पौंड्रिक ने कहा, ‘अगर इस्पात 2.2 कार्बन (सीओ2 उत्सर्जन) से नीचे का है तो उसे ग्रीन स्टील माना जाएगा। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि न केवल उद्योग, मंत्रालय, हितधारक बल्कि उपभोक्ता भी समझें कि वे ग्रीन स्टील का इस्तेमाल कर रहे हैं।’
कब मिलेगी कितनी रेटिंगः यदि एक टन इस्पात के उत्पादन में 1.6 टन या उससे कम सीओ2 का उत्सर्जन होता है तो उसे फाइव-स्टार रेटिंग वाला ग्रीन स्टील माना जाएगा। 1.6 से दो टन की सीमा में उत्सर्जन वाले उत्पाद को फोर-स्टार रेटिंग दी जाएगी, जबकि दो से 2.2 टन उत्सर्जन स्तर वाले उत्पादों को थ्री-स्टार रेटिंग मिलेगी। नेशनल इंस्टीटूट ऑफ सेकेंडरी स्टील टेक्नोलॉजी (एनआईएसएसटी) इस्पात के लिए हरित प्रमाणपत्र और स्टार रेटिंग जारी करने के साथ माप, रिपोर्टिंग और सत्यापन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में काम करेगा।