कोलकाता : समस्त ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करने वाले सूर्य देवता जगत के पालन हार भी माने जाते हैं। हर व्यक्ति की सुबह भगवान सूर्य के दर्शन के साथ ही शुरू होती है। रविवार का दिन भगवान भास्कर को समर्पित है। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो करियर या कारोबार में बढ़ोत्तरी के लिए सूर्य का मजबूत होना बहुत आवश्यक है। सूर्यदेव की प्रतिदिन आराधना से मन को शांति और शक्ति मिलती है। उन्हें हिरण्यगर्भ भी कहा जाता है क्योंकि सूर्योउदय के समय हिरण की तरह उसका रंग भी सुनहरा होता है।
सूर्य देव की पूजा कैसे करें
बहुत से लोग सुबह उठकर सूर्यदेव की पूजा करते हैं पर उसका भी एक सही तरीका होता है। सूर्य की पूजा ब्रह्ममुहर्त में करनी चाहिए। सुबह उठकर आप स्नान करें। अपने शरीर व मन को पवित्र करें फिर ताम्बे के लौटे में जल, अक्षत और फूल मिलाकर सूर्यदेव को अर्पित करें। साथ ही आप गायत्री मंत्र का भी उच्चारण करते रहें।
– ताम्बे को सूर्य का धातु माना जाता है इसलिए इसमें जल चढ़ाना शुभ होता है। जल अर्पित करते समय आप अपनी आंखे जल की धार में एकत्रित कर सूर्यदेवता को देखें। माना जाता है ऐसा करने से आंखो की रोशनी बढ़ती है।
– उदित हुए सूर्य को देख प्रणाम करना प्रगति की निशानी है। हिन्दू धर्म में हर दिन किसी न किसी देवता को समर्पित है। वेदों में सूर्यदेव को नेत्र माना गया है और ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों का राजा। रविवार के दिन आदित्य ह्रदय स्तोत्र का जाप करें इससे आपको मनवांछित फल मिलेगा, सुख समृद्धि आएगी और स्वास्थ भी अच्छा बना रहेगा।
कैसे हुआ सूर्यदेव का जन्म
वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य से ही धरती पर जीवन संभव है। सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा के पुत्र मरीचि हुए जिनके आगे उनके बेटे ऋषि कश्यप हुए। कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की बेटी दिति और अदिति से हुआ। दिति से सारे राक्षसों ने जन्म लिया और वहीं अदिति से सारे देवताओं ने। एक समय ऐसा आया जब दैत्यों ने स्वर्गलोक पर कब्जा कर लिया था और सारे देवताओं को निकाल दिया था। यह सब देख माता अदिति ने सूर्यदेव की आराधना की और उनसे यह वरदान मांगा कि उनकी कोख से सूर्यदेव का जन्म हो। घोर तपस्या के बाद उनकी यह इच्छा पूरी हुई और तेजस्वी बालक ने जन्म लिया, तभी सूर्यदेव को आदित्य के नाम से भी जाना जाता है। वे देवताओं के मसीहा बनकर आए और सारे राक्षसों को मारा।