नई दिल्ली : भारत का चंद्रयान -3 और रूस का लूना-25 चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर चुके हैं। शुक्रवार को चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल की गति धीमी (डीबूस्टिंग) करने की पहली प्रक्रिया सफल रही और अब वह चांद से महज 113 किमी की दूरी पर पहुंच गया है। वहीं, रूसी मिशन 21 अगस्त को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। इसके दो दिन बाद 23 अगस्त को भारतीय मिशन भी दक्षिणी ध्रुव पर ही चांद की सतह पर उतरेगा।
दुनिया की निगाहें भारत और रूस दोनों के मिशन पर टिकी हुई हैं। दोनों मिशन अपने उद्देश्यों में सफल होते हैं तो रूस और भारत क्रमशः पहले और दूसरे देश होंगे जिन्होंने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कराई है। इस बीच हमें जानना जरूरी है कि आखिर भारत का चंद्रयान -3 मिशन क्या है? रूस का लूना-25 क्या है? चांद की सतह पर कहां और कब लैंड करेंगे दोनों मिशन? ये कौन निर्धारित करता है? आइये समझते हैं…
पहले समझते हैं क्या है चंद्रयान-3?
चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा। इसमें एक प्रणोदन मॉड्यूल, एक लैंडर और एक रोवर है। चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया है।
चंद्रयान-3 ने 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा केन्द्र से उड़ान भरी और सब कुछ योजना के अनुसार होता है तो यह 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। मिशन को चंद्रमा के उस हिस्से तक भेजा जा रहा है, जिसे डार्क साइड ऑफ मून कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह हिस्सा पृथ्वी के सामने नहीं आता।
लूना-25 क्या है?
रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रासकास्माज ने 10 अगस्त को लूना- 25 अंतरिक्ष यान लांच किया था। इसे मास्को से लगभग 3,450 मील (5,550 किमी) पूर्व में स्थित वोस्तोचनी कोस्मोड्रोम से लॉन्च किया गया था। लूना- 25 को 313 टन वजनी रॉकेट सोयुज 2.1 बी में भेजा गया है। इसे लूना- ग्लोब मिशन का नाम दिया गया है। किट की लंबाई करीब 46.3 मीटर है और इसका व्यास 10.3 मीटर है।
उम्मीद जताई जा रही है कि 21 अगस्त को यह चांद की सतह पर पहुंच जाएगा। रूस इससे पहले 1976 में चांद पर लूना-24 उतार चुका है। विश्व में अबतक जितने भी चांद मिशन हुए हैं, वे चांद के भूमध्य रेखा पर पहुंचे हैं। लूना-25 सफल हुआ तो ऐसा पहली बार होगा कि कोई देश चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करे।
… तो दोनों मिशनों के चंद्र सतह पर उतरने का समय कैसे निर्धारित हुआ ?
लूना-25 एक शक्तिशाली रॉकेट पर सवार होकर 10 अगस्त को प्रक्षेपण के बाद केवल छह दिनों में चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया। चंद्रयान -3 को 14 जुलाई को लॉन्च होने के बाद 23 दिन लग गए। दरअसल, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलने के लिए बूस्टर या कहें शक्तिशाली रॉकेट यान के साथ उड़ते हैं। अगर आप सीधे चांद पर जाना चाहते हैं, तो आपको बड़े और शक्तिशाली रॉकेट की जरूरत होगी। इसमें ईंधन की भी अधिक आवश्यकता होती है, जिसका सीधा असर प्रोजेक्ट के बजट पर पड़ता है। यानी अगर हम चंद्रमा की दूरी सीधे पृथ्वी से तय करेंगे तो हमें ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। नासा भी ऐसा ही करता है लेकिन इसरो का चंद्र मिशन सस्ता है क्योंकि उसने चंद्रयान को सीधे चंद्रमा पर नहीं भेजा है।
फिलहाल दोनों मिशन चंद्रमा की कक्षा में हैं और लैंडिंग की उल्टी गिनती शुरू होने को है। ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठते हैं कि लैंडिंग तिथि का चुनाव किन कारकों से तय होता है? दरअसल, 23 अगस्त वह तारीख है जिस दिन चंद्रमा पर दिन की शुरुआत होती है। एक चंद्र दिवस पृथ्वी पर लगभग 14 दिनों के बराबर होता है, जब सूर्य का प्रकाश लगातार उपलब्ध रहता है। चंद्रयान-3 के उपकरणों का जीवन केवल एक चंद्र दिवस का ही होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण होते हैं और उन्हें चालू रहने के लिए सूर्य की रोशनी की जरूरत होती है।
रात के समय चंद्रमा अत्यधिक ठंडा हो जाता है। यह तापमान शून्य से 100 डिग्री सेल्सियस नीचे तक पहुंच जाता है। ऐसे कम तापमान पर उपकरण जम सकते हैं और ये काम करना भी बंद कर सकते हैं। अवलोकनों और प्रयोगों के लिए अधिकतम समय मिले इस लिहाज से चंद्रयान-3 का चंद्र दिवस की शुरुआत में उतरना जरूरी है।
सीधे शब्दों में कहें तो चंद्रयान-3 23 अगस्त से पहले उतर नहीं सकता और 24 अगस्त के बाद उतरना भी नहीं चाहेगा। वहीं दूसरी ओर लूना-25 के लिए ऐसा कोई मुद्दा नहीं है। यह भी सौर ऊर्जा से संचालित है, लेकिन इसमें रात के समय उपकरणों को गर्मी और बिजली प्रदान करने के लिए एक जनरेटर भी लगाया गया है। इसका जीवन एक वर्ष है और इसकी लैंडिंग चंद्रमा पर उपलब्ध सूर्य की रोशनी पर निर्भर नहीं करती।
भारतीय और रूसी मिशन कितनी दूरी पर उतरेंगे?
दोनों मिशनों चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास चंद्र सतह पर उतरेंगे। लैंडिंग की जगह चंद्रमा पर बिल्कुल ध्रुवीय क्षेत्र में नहीं हैं। चंद्रयान-3 के लिए निर्धारित स्थल लगभग 68 डिग्री दक्षिण अक्षांश है जबकि लूना-25 का स्थान 70 डिग्री दक्षिण के करीब है। लेकिन ये अभी भी चंद्रमा पर किसी भी अन्य लैंडिंग की तुलना में दक्षिण में बहुत दूर हैं। दुनिया के सभी मिशन अभी तक भूमध्यरेखीय क्षेत्र में ही उतरे हैं। इसका मुख्य वजह यह है कि इस क्षेत्र को सबसे अधिक धूप मिलती है। चंद्रयान-3 और लूना-25 के लैंडिंग स्थलों के बीच चंद्रमा की सतह पर वास्तविक दूरी कई सौ किलोमीटर हो सकती है। पिछले दिनों एजेंसी रासकास्माज ने एक बयान में कहा था कि लूना-25 और चंद्रयान-3 दोनों मिशन एक-दूसरे के रास्ते में नहीं आएंगे। हम किसी देश या स्पेस एजेंसी के साथ प्रतियोगिता नहीं कर रहे हैं। दोनों मिशन में लैंडिंग के लिए अलग-अलग क्षेत्रों की योजना है।