तनाव, नर्वसनेस, उदासी एवं चिंता के कारण
तनाव, नर्वसनेस, उदासी एवं चिंता के कारण रोमछिद्र सिकुड़ जाते हैं और रक्त का संचार अर्थात ऑक्सीजन और पोषक तत्वों का प्रवाह दूसरी ओर मुड़ जाता है। पसीना अधिक आने लगता है तथा कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं। त्वचा में रासायनिक और भौतिक परिवर्तन होने लगते हैं। त्वचा की प्राकृतिक नमी कम हो जाती है तथा तेल की खपत अधिक होने लगती है। इन सभी कारणों से त्वचा पर दाग, धब्बे, पपड़ी, धारियां आदि पड़ने लगती हैं तथा त्वचा बुझी, निस्तेज और झुर्रीदार नजर आने लगती है। जब मन प्रसन्न रहता है तो त्वचा भी तनावरहित रहती है। उस अवस्था में रोमछिद्र खुले रहते हैं, प्रवाह ठीक रहता है और चेहरे पर स्वास्थ्य की आभा दमकती है। तेल का उत्पादन सामान्य होता है, मांसपेशियां तनावरहित रहती हैं, त्वचा चिकनी, जवान और जानदार लगती है। रंग भी साफ नजर आता है। क्रोध के कारण त्वचा की आभा मन्द पड़ जाती है और चेहरा निस्तेज हो जाता है। उदासी, दु:ख या निराशा के आते ही चेहरा लटक जाता है। खुशी उम्र को बढ़ाती है और चेहरे को जवान बनाती हैं। त्वचा के रंगरूप और स्वास्थ्य पर हार्मोन्स का भी बड़ा असर होता है। हार्मोन शरीर में एक प्रकार की स्वनिर्मित औषधि होती है। जब कभी तनाव अधिक होता है तो हार्मोन जरूरत से अधिक बनने लगते हैं जिसका प्रतिकूल प्रभाव त्वचा पर दिखने लगता है। ‘एक्ने’ को बढ़ावा देने वाला हार्मोन ‘टेस्टोस्टेरोन’ भावनात्मक तनाव के कारण अपना उत्पादन बढ़ा देता है और चेहरे पर मुंहासे दिखाई देने लगते हैं। तनाव का सीधा असर हार्मोन्स पर भी पड़ता है। ‘एस्ट्रोजन’ ही त्वचा को सुन्दर, पुष्ट, लचीला और जवान रखता है। ‘मेनोपाॅज’ के साथ ‘एस्ट्रोजन’ का भी बनना बंद हो जाता है इसीलिए त्वचा सूखी और झुर्रीदार नजर आती है।