नाबालिग पीड़िता की अंडमान से पश्चिम बंगाल वापसी

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सराहनीय पहल
नाबालिग पीड़िता की अंडमान से पश्चिम बंगाल वापसी
Munmun
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सन्मार्ग संवाददाता

श्री विजयपुरम : जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए), अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह ने एक नाबालिग पीड़िता को उसके परिवार तक सुरक्षित पहुँचाने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। यह पहल दक्षिण अंडमान जिला प्रशासन और बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी), दक्षिण अंडमान के समन्वित प्रयासों से संभव हो सकी। पीड़िता को उसके मूल स्थान पुरबा बर्दवान, पश्चिम बंगाल सुरक्षित रूप से वापस भेजा गया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि उसे उसके परिवार की देखरेख और भावनात्मक समर्थन मिल सके।

घटना की पृष्ठभूमि के अनुसार, 30 जून 2025 को चाथम थाना में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज (POCSO) एक्ट, 2012 के तहत मामला संख्या 27/25 दर्ज किया गया था। पुलिस जांच के दौरान यह पता चला कि पीड़िता पश्चिम बंगाल के पुरबा बर्दवान जिले की निवासी है और किसी आरोपी व्यक्ति के साथ अंडमान आई थी। मामले के उजागर होने के बाद बालिका को अस्थायी रूप से बाल कल्याण समिति, दक्षिण अंडमान की देखरेख में रखा गया था, जहाँ उसकी सुरक्षा और मानसिक स्थिति का विशेष ध्यान रखा गया।

जाँच पूरी होने के बाद, पीड़िता की माता द्वारा एक औपचारिक निवेदन जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को सौंपा गया, जिसमें बालिका को उसके मूल स्थान पर वापस भेजने का अनुरोध किया गया था। इस पर त्वरित कार्रवाई करते हुए डीएलएसए ने उपायुक्त, दक्षिण अंडमान से संपर्क साधा और बालिका की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध किया।

उपायुक्त ने मामले को गंभीरता से लेते हुए बाल कल्याण समिति, दक्षिण अंडमान के साथ समन्वय स्थापित किया और बालिका की सुरक्षित यात्रा की संपूर्ण व्यवस्था की। यात्रा के दौरान सुरक्षा कर्मियों और महिला सहायक अधिकारियों को साथ भेजा गया, ताकि पीड़िता को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो। इसके साथ ही, पुरबा बर्दवान की बाल कल्याण समिति को पूर्व सूचना दी गई ताकि वे बालिका की पारिवारिक पृष्ठभूमि की जाँच और आगे की पुनर्वास प्रक्रिया का पालन कर सकें।

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने इस मानवीय कार्य में सक्रिय सहयोग देने के लिए दक्षिण अंडमान के उपायुक्त तथा बाल कल्याण समिति के प्रति आभार व्यक्त किया है। प्राधिकरण ने कहा कि यह मामला न केवल बाल अधिकारों की रक्षा का उदाहरण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि राज्यों के बीच संवेदनशील और समन्वित सहयोग से ऐसे मामलों में सकारात्मक परिणाम संभव हैं।

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