आधुनिकता की रफ्तार में थकने लगा कोलकाता का हाथ रिक्शा

आधुनिकता की रफ्तार में थकने लगा कोलकाता का हाथ रिक्शा

एक समय हाथ रिक्शा माना जाता था स्टेट्स सिंबल पेट्रोल, डीजल और इलेक्ट्रिक वाहनों की दौड़ में पिछड़ रहा हाथ रिक्शा कोई 20, तो कोई 45 सालों से चला रहा है हाथ रिक्शा
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प्रगति, सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : अब तक अगर आपने काेलकाता में हाथ रिक्शे की सवारी नहीं की है, तो यूं समझ लीजिये आपने कोलकाता को ठीक से नहीं जाना है। हाथ रिक्शा कोलकाता का इतिहास बयां करते हैं। अगर हम इसे सिटी ऑफ जॉय कोलकाता की पहचान कहें तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। एक समय में यह लोगों के लिए स्टेट्स सिंबल माना जाता था, मगर धीरे-धीरे आधुनिकता की दौड़ में यह कहीं खोता जा रहा है। अब हाथ रिक्शा की संख्या काफी कम हो गई है। जितनी तेजी से पेट्रोल, डीजल और इलेक्ट्रिक गाड़ियों की संख्या बढ़ रही है, उतनी ही तेजी से शहर में हाथ रिक्शा की संख्या घटती जा रही है।

ऐसे रिक्शे और कहीं नहीं चलते

हाथ रिक्शा पूरे विश्व में और कहीं नहीं, मात्र कोलकाता में ही देखने को मिलते हैं। कोलकाता में इन रिक्शों की शुरुआत 19वीं सदी के आखिरी दिनों में चीनी व्यापारियों ने की थी, तब इसे सामान की ढुलाई के लिए उपयोग किया जाता था। हालांकि बदलते समय के साथ यह परिवहन के सस्ते साधन के तौर पर उपयोग हाेने लगा। इसके बाद धीरे-धीरे ये रिक्शे कोलकाता की पहचान बन गए। बारिश के सीजन में जब महानगर में सब कुछ ठप हो जाता है तब भी इन रिक्शों के जरिए जीवन मंथर गति से चलता रहता है।

जहां दूसरे वाहन नहीं जाते वहां पहुंचते हैं ये रिक्शे

जहां अन्य वाहन नहीं पहुंच पाते, शहर की वैसी संकरी गलियों में यह हाथ रिक्शे सवारी लेकर जाते हैं। हालांकि यह रिक्शे शहर के कुछ हिस्सों में ही चलते हैं। एक रिक्शे वाले ने बताया कि वह मुख्य रूप से कॉलेज स्ट्रीट, लालबाजार, चांदनी और यहीं आस पास के इलाके में रिक्शा चलाते हैं। वे इसके लिए 100 से 150 रुपये लेते हैं। उन्होंने बताया कि यह उनकी आजीविका चलाने का मुख्य साधन है, मगर जितनी तेजी से हाथ रिक्शा की संख्या कम हो रही है, यह उनके लिए चिंता पैदा कर रही है। कोई 25 सालों से, तो कोई 40 से 45 सालों से अधिक समय से यह हाथ रिक्शा चलाते आ रहे हैं।

क्या कहा हाथ रिक्शा चलाने वालों ने?

हाथ रिक्शा चलाने वाले राम खेलावन यादव ने बताया कि वह 40 साल से अधिक समय से हाथ रिक्शा चला रहे हैं। उन्होंने बताया कि रिक्शा काफी भारी होता है, मगर इसे चलाकर ही अपनी रोजी रोटी कमाते हैं। मुकेश यादव ने कहा कि यह भी बीते 24 सालों से हाथ रिक्शा चला रहे हैं। उन्होंने बताया कि कभी 50, तो कभी 100 रुपये, वे पैसेंजर और सामान के मुताबिक भाड़ा लेते हैं। राम लाल यादव ने बताया कि वह मुख्य रूप से बिहार के रहने वाले हैं, मगर 45 सालों से वह कोलकाता में हाथ रिक्शा चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि आजकल आधुनिक गाड़ियां आ गई है, जिस वजह से हाथ रिक्शे की मांग बहुत कम हो गई है।

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