

जितेंद्र, सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : तीन दशक से भी अधिक समय तक नगरपालिकाओं में सेवा देने के बाद जब सेवानिवृत्त होते हैं तो पेंशन आदि सुविधाओं को पाने के लिए हाई कोर्ट में रिट दायर करनी पड़ती है। समय का जिक्र न करें। जस्टिस गौरांग कांत ने एक मामले में टिप्पणी की है कि सेवानिवृत्त होने के साढ़े चार साल बाद भी नहीं मिली है पेंशन। जस्टिस कांत ने यह सवाल भी किया है कि अफसरों की नाकामी का खामियाजा पीटिशनर क्यों चुकाएंगे। उन्होंने सभी मामलों में पेंशन और सेवानिवृत्ति के बाद के बकाये का भुगतान का आदेश दिया है।
यहां तीन पीटिशनरों का जिक्र है। उन्होंने हाई कोर्ट में रिट दायर की है। पर ऐसे भी बहुतेरे होंगे जो हाई कोर्ट नहीं आ पाए हैं। प्रसुन राय की नियुक्ति जियागंज अजीमगंज नगरपालिका में 1987 में हुई थी और 2024 में सेवानिवृत्त हो गए थे। सुदेव दुबे भी इसी नगरपालिका के हैं और इनकी नियुक्ति 1987 में हुई थी और 2020 में सेवानिवृत्त हो गए थे। प्रवीर कुमार भट्टाचार्या गारुलिया नगरपालिका के हैं और 33 साल तक सेवा करने के बाद 2021 में सेवानिवृत्त हो गए थे। अब ये सारे बकाये के भुगतान के लिए हाई कोर्ट की शरण में हैं। इन तीनों मामले में राज्य सरकार की एक ही दलील है कि उनकी नियुक्ति से पूर्व राज्य सरकार की स्वीकृत्ति नहीं ली गई थी। दलील है कि नगरपालिकाओं के लिए यह बाध्यतामूलक है कि नियुक्ति से पूर्व राज्य सरकार से स्वीकृत्ति लेनी पड़ेगी। तत्कालीन चेयरमैनों ने ये नियुक्तियां दी थीं। अब सवाल उठता है कि अगर स्वीकृत्ति सांविधिक बाध्यता है तो इसे पूरा करने की जिम्मेदारी तो नौकरशाही की थी। तीन दशक से भी अधिक समय तक सेवा के दौरान इस तकनीकी गड़बड़ी को दूर करने का ख्याल क्यों नहीं आया। जस्टिस कांत ने तीनों मामलों में एक निर्धारित समय के अंदर भुगतान किए जाने का आदेश दिया है। गारुलिया वाले मामले में तो जस्टिस कांत ने कंटेंप्ट की चेतावनी भी दी है।