नयी दिल्ली : बेबाक टिप्पणियों के लिए चर्चा में रहे देश के प्रधान न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति बी आर गवई ने एक बार फिर अपनी बेबाकी से सबका ध्यान खींचा है। उनकी अध्यक्षता वाले पीठ के सामने सुनवाई के लिए गुरुवार ( 16 अक्टूबर) को एक जनहित याचिका (PIL) आयी थी, जिसमें सरकारी और निजी बसों में अत्यधिक भीड़भाड़ पर रोक लगाने की मांग की गयी थी। इसके अलावा बसों में भीड़ नियंत्रण के लिए दिशा-निर्देश देने की भी मांग की गयी थी लेकिन CJI गवई ने PIL याचिका खारिज कर दी।
क्या था याची का तर्क?
याचिका दायर करने वाले वकील ने CJI के सामने तर्क दिया कि यह बहुत अहम मुद्दा है क्योंकि इस वजह से हर साल लाखों लोगों की मौत होती है। याचिका में बसों की ओवरलोडिंग से लोगों के जीवन को हो रहे खतरे के अलावा बसों में सामान की ढुलाई से सरकार को हो रहे राजस्व के नुकसान का भी हवाला दिया गया था।
त्योहोरी सीजन में दुर्घटना की आशंका ज्यादा
गौरतलब है कि त्योहोरी सीजन में बसों और ट्रेनों में निर्धारित क्षमता और संख्या से बहुत ज्यादा यात्री सफर करते हैं। बसों में 16 से 18 टन वजन ढोने की क्षमता होती है लेकिन इस सीमा से ज्यादा भार ढोया जा रहा है। कई बार बस की छतों पर ज्यादा सामान रखे जाने से भी बसें अनियंत्रित होकर दुर्घटनाग्रस्त होती हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट भी इस बात की तस्दीक करती है कि बस की ओवरलोडिंग के चलते हर साल हजारों लोगों की जान चली जाती है। याचिका में मोटर वेहिकल्स एक्ट, 1988 और सेंट्रल मोटर वेहिकल्स रूल्स, 1989 का सख्ती से पालन कराने की मांग की गयी थी लेकिन PIL खारिज कर दी गयी।
‘सरकार के महकमे हैं जो इसे देखते हैं’
न्यायमूर्ति बी आर गवई ने याचिका खारिज करते हुए दो टूक कहा कि जाइए सरकार के सामने जाकर अपनी बात रखिए। संविधान के अन्य अंग भी काम कर रहे हैं। हर बात के लिए आप अदालत नहीं आ सकते। CJI ने स्पष्ट किया कि सरकार के कई अंग हैं जो इसकी व्यवस्था देखते हैं, इसलिए याची को सरकार से संपर्क कर इस मुद्दे को उठाना चाहिए।