
कोलकाता : स्वस्तिक एक विशेष आकृति है, जिसके साथ किसी भी कार्य का शुभारंभ किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि स्वस्तिक चारों दिशाओं से शुभ और मंगल को आकर्षित करता है। चूंकि इससे शुभ कार्यों की शुरुआत होती है, इसलिए इसे भगवान गणेश का रूप भी माना जाता है। इसके प्रयोग से सम्पन्नता, समृद्धि और एकाग्रता की प्राप्ति होती है। अगर किसी शुभ कार्य से पहले स्वस्तिक का प्रयोग ना किया जाए तो उसके सफलतापूर्वक संपन्न होने की संभावना बहुत कम रहती है।
स्वस्तिक का महत्व
सही तरीके से बने हुए स्वस्तिक से ढेर सारी सकारात्मक उर्जा निकलती है। यह उर्जा वस्तु या व्यक्ति की रक्षा करती है। स्वस्तिक की उर्जा का अगर घर, अस्पताल या दैनिक जीवन में प्रयोग किया जाए तो व्यक्ति रोगमुक्त और चिंताओं से दूर रहता है। हालांकि गलत तरीके से प्रयोग किया गया स्वस्तिक भयंकर समस्याएं भी दे सकता है।
स्वस्तिक के प्रयोग के सही नियम क्या हैं?
स्वस्तिक की रेखाएं और कोण बिलकुल सही होने चाहिए। भूलकर भी उल्टे स्वस्तिक का निर्माण और प्रयोग न करें। लाल और पीले रंग के स्वस्तिक ही सर्वश्रेष्ठ होते हैं। स्वस्तिक केवल तीन रंगों का ही प्रयोग किया जा सकता है- लाल, पीला और नीला। किसी अन्य रंग का बना स्वस्तिक समस्याएं दे सकता है। अगर स्वस्तिक को धारण करना है तो इसके गोले के अंदर धारण करें।
किस प्रकार करें स्वस्तिक का प्रयोग?
घर के मुख्य द्वार या जहां-जहां वास्तु दोष हो, वहां लाल रंग का स्वस्तिक बनाएं। पूजा स्थल, पढ़ने की जगह या वाहन पर अपने सामने स्वस्तिक बनाएं। एकाग्रता के लिए सोने या चांदी में बना स्वस्तिक लाल धागे में धारण करें। इलेक्ट्रोनिक उपकरणों पर छोटे छोटे स्वस्तिक लगाने से वे जल्दी खराब नहीं होते हैं।