कोलकाता : सावन माह भगवान शिवजी को अत्यंत प्रिय है। सावन माह की शुरुआत 14 जुलाई 2022 से हो चुकी है जोकि 12 अगस्त 2022 तक रहेगी। सावन का महीना शिवजी के साथ ही शिव भक्तों के लिए भी खास होता है। इस पूरे माह शिवभक्त भगवान की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। वहीं शिवालयों में भगवान शिवजी का जलाभिषेक किया जाता है। सावन माह में कांवड़ यात्रा का भी विशेष महत्व होता है। भक्त पवित्र गंगा नदी का जल कांवड़ में भरकर कई किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं और इसके बाद इस जल से भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया जाता है। भारत में कांवड़ यात्रा की परंपरा काफी पुरानी है। जानते हैं सावन में कांवड़ यात्रा से जुड़ी पौराणिक कथाओं के बारे में…
कांवड़ यात्रा से जुड़ी कथाएं
कांवड़ यात्रा को लेकर कई कथाएं जुड़ी हैं। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम, रावण, परशुराम, श्रवण कुमार द्वारा कांवड़ यात्रा शुरू की गई थी। परशुराम से जुड़ी कांवड़ की कथा के अनुसार, भगवान परशुराम पहला कांवड़ लेकर आए थे। उन्होंने शिवजी को प्रसन्न करने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर के गंगाजल से उनका अभिषेक किया था। वहीं श्रवण कुमार से जुड़ी कांवड़ यात्रा की कथा के अनुसार, श्रवण कुमार ने अपने नेत्रहीन माता-पिता को कंधे पर कांवड़ में बैठाकर यात्रा कराई और गंगा स्नान कराया साथ ही शिवजी का भी गंगाजल से अभिषेक किया। मान्यता है कि यहीं से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।
कांवड़ यात्रा की एक पौराणिक कथा रावण से जुड़ी हुई है जो काफी प्रचलित है। इसके अनुसार, लंकापति रावण के समय से ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। कहा जाता है कि, जब भगवान शिवजी ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को पी लिया था तो उनके कंठ में तीव्र जलन होने लगी थी। तब शिवजी ने अपने भक्त रावण को स्मरण किया और रावण कांवड़ से जल लेकर भगवान शिव के पास पहुंचे और उनका अभिषेक किया।
सावन में क्यों होती है कांवड़ यात्रा, जानें महत्व और इससे जुड़ी कथा
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