
कोलकाता : हिंदू धर्म में वाट सावित्री व्रत का ख़ास महत्त्व है। इस व्रत को महिलाएं बहुत श्रद्धा से रखती हैं। यह व्रत हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। वट सावित्री व्रत को सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और संतान प्राप्ति के लिए रखती हैं। इस व्रत का संबंध सावित्री देवी से है, पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री देवी ने अपने पति सत्यवान की आत्मा को अपने तपोबल से यमराज से वापस ले लिया था। यह घटना ज्येष्ठ अमावस्या तिथि को हुई थी। इस तिथि को ही शनि जयंती भी मनाई जाती है। वट सावित्री व्रत की पूजा बहुत ही विधि विधान से की जाती है। इस पूजा के लिए इन चीजों की जरूरत होती है इसके बिना पूजा अधूरी रहती है। आइये जानें इन चीजों के बारे में।
वट वृक्ष : वट सावित्री वृक्ष पूजा के लिए बरगद का वृक्ष बहुत जरूरी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार वट वृक्ष ने अपनी जटाओं से सावित्री के पति सत्यवान की मृत शरीर को घेर रखा था। ताकि जंगली जानवर उनके शरीर को कोई नुकसान न पहुंचा पायें। इसी लिए वट वृक्ष की पूजा की जाती है।
चना: पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज ने सावित्री को उनके पति की आत्मा को चने के रूप में लौटाया था। इस लिए इस व्रत पूजा में प्रसाद के रूप में चना रखा जाता है।
कच्चा सूत : मान्यता है कि सावित्री ने वट वृक्ष में कच्चा सूत बांधकर अपने पति की शरीर को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की थी। इस लिए व्रत में कच्चा सूत आवश्यक है।
सिंदूर : हिंदू धर्म में सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना गया है। सुहागिन महिलायें सिंदूर को वट वृक्ष में लगाती हैं। उसके बाद उसी सिंदूर से महिलाएं अपनी मांग भरकर अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र का वरदान मांगती हैं।
बांस का पंखा {बेना}
ज्येष्ठ में बहुत गर्मी होती है। वट वृक्ष को अपना पति मानकर महिलाएं उसे बांस के पंखे से हवा देती हैं। मान्यता है कि सत्यवान लकड़ी काटते समय अचेत अवस्था में गिरे थे तो सावित्री ने उन्हें बांस के पंखे से हवा झला था। इसी लिए इस व्रत में बांस के पंखे की जरूरत होती है।