अब यह सिद्ध हो चुका है कि निष्क्रिय जीवन शैली वाले लोग आयु बढ़ने के साथ चुस्त व स्वस्थ नहीं रह पाते। वही लोग ढलती आयु में भी स्वस्थ रह पाते हैं जो किसी न किसी रूप में सक्रिय जीवन शैली अपनाते हैं। युवावस्था में तो सभी चुस्त रहते हैं किन्तु धीरे-धीरे यह चुस्ती समाप्त हो जाती है और हमारे शरीर के विभिन्न अंगों व मस्तिष्क का क्षरण प्रारंभ हो जाता है क्योंकि हममें से अधिकतर लोग अपने व्यापार या कैरियर में इतने मस्त हो जाते हैं कि उनके पास शारीरिक श्रम या व्यायाम के लिए समय ही नहीं बचता। अमरीका में एक शारीरिक शिक्षा अध्यापक ने देखा कि उसके अधिकतर सहकर्मी स्कूल बंद होने के समय बहुत थके हुए दिखाई देते थे। उसने उनका स्वास्थ्य सुधारने की एक आसान योजना बनाई जिसके अनुसार उन्हें कठिन शारीरिक श्रम के स्थान पर उसके बराबर हल्का श्रम तो करना था। उदाहरणार्थ 15 मिनट की तेज सैर के स्थान पर 20 मिनट की अपेक्षाकृत मध्यम गति से सैर की जा सकती थी। उसके अतिरिक्त वे अपनी पसंद का कोई भी कार्य जैसे ‘बाॅलिंग या गोल्फ खेलना या बागवानी कर सकते थे। कुछ ही मास में इस कार्यक्रम के सहभागियों ने अपनी शारीरिक व मानसिक क्षमता में परिवर्तन पाया। इससे शोधकर्ता इस निर्णय पर पहुंचे कि बेहतर स्वास्थ्य के लिए भारी शारीरिक श्रम आवश्यक नहीं है। शोधकर्ताओं के अनुसार चुस्त दुरुस्त रहने का अर्थ यह है कि मनुष्य अपने दैनंदिन कार्य चुस्ती व स्फूर्ति के साथ बिना थके हुए करे। वर्षों से शारीरिक श्रम न करने वाले व्यक्ति भी इस स्तर पर पहुंच सकते हैं यदि वे नियमित रूप से हल्का शारीरिक व्यायाम करें। बस स्टाप से घर तक 15 मिनट की पैदल सैर, उसके पश्चात 15 मिनट तक घर में या बाहर साइकिल चलाना इसके लिए काफी है।
एक अमरीकी हृदय रोग विशेषज्ञ रिचर्ड स्टोन के अनुसार सबको अपनी पसन्द की शारीरिक गतिविधि चुनने का मार्ग प्रयास करना चाहिए किंतु गतिविधि वही चुनें जिसे आप जीवन भर या काफी लंबे समय तक कर सकें। यह सही है कि तैराकी या नियमित जॉगिंग से भी स्वास्थ्य का उत्तम स्तर पाया जा सकता है किंतु जिनके लिए यह संभव न हो, वे अपनी जीवन शैली में ही थोड़ा परिवर्तन कर मनचाहे परिणाम पा सकते हैं। आज के अधिकतर वयस्क पुरुष और महिलाएं 24 घंटों में 30 मिनट की हल्की शारीरिक गतिविधि भी नहीं करते। कुछ लोग तो बिल्कुल ही निष्क्रिय होते हैं। आयु बढ़ने के साथ यह निष्क्रियता बढ़ती ही जाती है। महिलाओं के लिए यह और भी सत्य है। इस निष्क्रियता से लाखों लोग विभिन्न बीमारियों और अकाल मृत्यु के शिकार होते हैं।
हृदय रोग:- विभिन्न शोधों से यह भली प्रकार सिद्ध हो चुका है कि नियमित व्यायाम से रक्त में अच्छे कोलेस्ट्रोल (एच. डी. एल) का स्तर बढ़ता है जो रक्तवाहिनियों में जमने वाले बुरे कोलेस्ट्रोल (एल. डी. एल.) को रक्त से निकाल कर लिवर में ले जाता है जहां से बाइल के रूप में निकल जाता है। शारीरिक दृष्टि से सक्रिय लोगों का एच. डी. एल-एल. डी. एल. अनुपात व्यायाम के पश्चात् कई दिनों तक सही बना रहता है।
नियमित शारीरिक व्यायाम उच्च रक्तचाप कम करता है और हृदय की रक्तवाहिनियों की क्षमता बढ़ाता है और हृदय में नई रक्तवाहिनियों की क्षमता बढ़ाता है और हृदय में नई रक्तवाहिनियां पैदा करता है जिससे हृदय को अतिरिक्त रक्त मिलता है।
कैंसर:- दुनिया भर में हुए शोधों से पता चला है कि नियमित शारीरिक सक्रियता से कोलोन कैंसर का खतरा कम होता है क्योंकि शारीरिक गतिविधि से हमारे शरीर में एक ऐसा रसायन बनता है जो आंतों की सक्रियता को बढ़ाता है जिससे कैंसर पैदा करने वाले पदार्थ हमारे पाचक संस्थान में अधिक देर तक नहीं रह पाते।
मधुमेह:- आज भारत में मधुमेह ग्रस्त रोगियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। मधुमेह का सर्वाधिक खतरा उन लोगों को है जो मोटे होने के साथ-साथ निष्क्रिय जीवन शैली अपनाए हुए हैं। मधुमेह में शरीर में ग्लुकोस और इंसुलिन का अनुपात गड़बड़ हो जाता है जिससे शरीर के विभिन्न अंगों को क्षति पहुंचती है। नियमित व्यायाम से शरीर में ग्लूकोस का चयापचय होता रहता है। इससे पेट की चर्बी भी कम होती है जो मधुमेह का बड़ा कारण है।
गठिया:- नियमित सैर और नृत्य से हड्डियों का क्षरण कम होता है जो गठिया के लोगों के लिए बहुत लाभदायक है। इससे हड्डियां मजबूत बनती हैं और बड़ी आयु के लोगों में हड्डी टूटने की संभावना कम हो जाती है।
नियमित व्यायाम से चिंता व अवसाद को भी दूर रखा जा सकता है क्योंकि शारीरिक गतिविधि से मोनोएमीनज नाम के रसायन पैदा होते हैं जो हमारे मूड को अच्छा रखते हैं। शारीरिक गतिविधियों से मांसपेशियों का तनाव दूर होता है जिससे हम बेहतर महसूस करते हैं। सप्ताह में तीन बार 30 मिनट व्यायाम करने से भी मूड अच्छा होता देखा गया है।
अधिकतर लोग चालीस वर्ष की आयु के पश्चात् निष्क्रिय होने लगते हैं। यदि आपकी जीवनशैली निष्क्रिय हो भी गई है तो चिंता की कोई बात नहीं। आप आज ही अपने जीवन की बागडोर अपने हाथ में ले लें और हल्की शारीरिक गतिविधि नियमित प्रारंभ कर दें तो कोई कारण नहीं कि आप एक बेहतर स्वास्थ्य शरीर न पा सकें।