कोलकाताः हम सभी इस बारे में जानते हैं कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को पूजा करने, मंदिर जाने, खाना बनाने यहां तक कि कई घरों में तो रसोई में प्रवेश करने की भी इजाजत नहीं होती है। ऐसा सिर्फ गांव तक सीमित नहीं है। गौर करने पर आपको शहरों में भी ऐसे कई घर देखने को मिल जाएंगे। अब सवाल यह उठता है कि पीरियड्स होने पर आखिर ऐसा क्या बदल जाता है कि महिलाओं को अपवित्र मान लिया जाता है?
धर्म से जुड़ने का कारण- पुराने समय में धर्म में लोगों की बहुत आस्था थी। यही वजह है कि एजुकेशन से जुड़ी ज्यादातर चीजों को धर्म से जोड़ दिया जाता रहा है। पीरियड्स में पूजा ना करने का कारण यह माना जाता है कि पुराने समय में पूजा पद्धति मंत्रोच्चार के बिना पूरी नहीं होती थी। या कहिए कि मंत्रोच्चार द्वारा ही पूजा की जाती थी।
-मंत्रोच्चार को यदि पूरी धार्मिक प्रक्रिया शुद्धि और उच्चारण का ध्यान रखकर किया जाए तो इसमें शरीर की बहुत ऊर्जा खर्च होती है। क्योंकि पीरिड्स में महिलाओं का शरीर पहले से ही कमजोर हो जाता है, ऐसे में अगर वे मंत्रोच्चार करेंगी तो उनके शरीर को और अधिक ऊर्जा की जरूरत होगी। साथ ही वे पूजा में ध्यान नहीं लगा पाएंगी। इसलिए महिलाओं को पूजा करने की मनाही थी। जो बाद में एक रूढ़िवादी सोच बन गई।
किचन में क्यों नहीं जाएंगी महिलाएं?-आखिर महिलाएं अगर पीरियड्स के दौरान रसोई में चली जाएं तो क्या हो जाता है? रसोई में ना जाने की परंपरा के पीछे हमारा सामाजिक ताना-बाना है। बीते वक्त में हमारे समाज में जॉइंट फैमिलीज हुआ करती थीं। पूरा कुटुंब एक हवेली में साथ रहा करता था।
-इसलिए भोजन भी बहुत अधिक मात्रा में बनता था। साथ ही उस समय खाद्यपदार्थों का बाजारीकरण नहीं हुआ था तो महिलाओं के पास काम भी बहुत अधिक हुआ करते थे। जैसे, आटा, दाल, मसाले जैसी सभी चीजें घरों में तैयार की जाती थीं।
– इन सभी कामों से महिलाओं को कुछ दिन आराम मिल सके। इस कारण उनके लिए पीरियड्स के दौरान रसोई में ना जाने की परंपरा की शुरुआत हुई होगी। ऐसा हम पीरियड्स के दौरान महिलाओं की फिजिकल और मेंटल स्थिति को देखते हुए कह सकते हैं। क्योंकि उस जमाने में ना तो पैड्स हुआ करते थे और ना ही वजाइनल वॉश। साथ ही पेन किलर के रूप में भी सिर्फ घरेलू नुस्खों पर ही निर्भरता थी।