कोलकाताः सावन का चौथा और अंतिम सोमवार आज है। इसी के साथ भगवान शिव का प्रिय सावन मास धीरे-धीरे समाप्ति की ओर पहुंच रहा है। 14 जुलाई से शुरू हुआ सावन का महीना 12 अगस्त यानी रक्षा बंधन के दिन समापन हो जाएगा। इस बार सावन सोमवार पर बेहद खास योग बन रहा है। इस दिन भगवान विष्णु की प्रिय एकादशी का व्रत भी सोमवार के दिन ही है। साथ ही इस दिन रवि नामक योग भी है। ऐसे में सोमवार व्रत रखने से श्रद्धालुओं को एक साथ भगवान शिव और विष्णु के व्रत रखने का पुण्य फल मिलेगा। शास्त्रों में बताया गया है कि सावन के सोमवार के दिन शिवलिंग की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। आइए जानते हैं सावन के चौथे सोमवार पर महादेव के साथ भगवान विष्णु का भी आशीर्वाद कैसे प्राप्त करें…
सावन सोमवार का महत्व
सावन मास भगवान शिव का प्रिय मास है, इस माह में भक्त और भगवान के बीच की दूरी कम हो जाती है। सावन मास में ही भगवान महादेव माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए थे और उनको अपनी पत्नी रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया था। साथ ही महादेव ने यह भी कहा कि जो सावन महीने जन कल्याण के कार्य करेगा और गरीब व जरूरतमंद की मदद करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं मैं पूरी करूंगा। शिव पुराण में बताया गया है कि सावन के सभी सोमवार का व्रत करने से महादेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती। सावन के तीन सोमवार बीच चुके हैं और यह सावन 2022 का अंतिम सोमवार है।
सावन सोमवार पूजा शुभ मुहूर्त
सावन के चौथे सोमवार पर बेहद खास योग बन रहे हैं क्योंकि इस दिन सावन मास की पुत्रदा एकादशी का भी व्रत रखा जाएगा। साथ ही रवि नामक योग भी बन रहा है। यह योग सभी वार, नक्षत्र, तिथि को दोषों को दूर करने वाला है। रवि योग सुबह 05 बजकर 46 मिनट से दोपहर 02 बजकर 37 मिनट तक रहेगा। इस खास मुहूर्त में शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक करने से लाभ प्राप्ति के मार्ग में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और आरोग्य सुख की प्राप्ति होती है। ऐसे में सावन का चौथा सोमवार भगवान शिव और भगवान विष्णु के लिए बेहद खास माना जा रहा है।
सावन सोमवार पूजा विधि
शुभ योग में सावन के चौथे सोमवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान व ध्यान करें और साफ कपड़े पहनें। इसके बाद सूर्यदेव को जल दें क्योंकि इस दिन रवि नामक योग का भी निर्माण हो रहा है। इसके बाद पास शुभ मुहूर्त में पास के शिवालय में जाकर शिवलिंग की पूजा-अर्चना करें।सबसे पहले भगवान शिव का मंत्रों के साथ आह्वान करें। इसके बाद शिव मंदिर में हाथ में चावल लेकर शिवलिंग के सामने हाथ जोड़कर व्रत का संकल्प लें और अपनी गलतियों की क्षमा मांगे। इसके बाद शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक करें और फिर चंदन, अक्षत, फूल, बेलपत्र, शमी के पत्ते, धतूरा, भांग आदि पूजा की चीजें शिवलिंग पर अर्पित करें। पूजा सामग्री अर्पित करने के बाद चंदन का तिलक करें।
शिवलिंग के साथ ही माता पार्वती समेत शिव परिवार की पूजा करें और उनके सामने घी का दीपक जलाएं। इसके बाद शिव मंत्रों का जप करें और शिव चालीसा का पाठ करें। इसके बाद शिवजी की आरती उतारें और फिर प्रदोष काल में भी शिवलिंग की पूजा-अर्चना करें। इसके बाद आप भोजन कर सकते हैं।
शिव मंत्र
ॐ नमः शिवाय
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
ॐ ऐं नम: शिवाय
भगवान शिव की आरती
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥