
नई दिल्ली : असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजीयन (एनआरसी) के मुद्दे पर केंद्र सरकार का कहना है कि भारत को शरणार्थियों की राजधानी नहीं बनाया जा सकता है। मालूम हो कि शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय में असम सरकार और केंद्र सरकार ने एनआरसी की समय सीमा बढ़ाने के लिए अनुरोध किया है। राज्य में एनआरसी के पंजीकरण का समय 31
जुलाई तक निर्धारित किया गया था। अदालत में केन्द्र और असम सरकार की ओर पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य की एनआरसी सूची में कुछ लोगों को गलत तरीके से शामिल किया गया है तथा बाहर रखा गया है। ऐसे नागरिकों के आंकड़े करीब 20 फीसदी है, इनके सर्वेक्षण के सत्यपान की अनुमति दी जाए। साथ ही उन्होंने कहा कि भारत को दुनिया के शरणार्थियों की राजधानी नहीं बनने दिया जा सकता।
एनआरसी पंजी में बंग्लादेशियों के नाम शामिल
केन्द्र सरकार ने शीर्ष अदालत में कहा कि असम के सीमावर्ती जिलों में स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से बांग्लादेशियों के नाम राज्य की एनआरसी सूची में जोड़े गए हैं, जिस कारण सूची में लाखों अवैध घुसपैठियों के नाम शामिल हो गए हैं। साथ ही मेहता ने यह भी कहा कि सरकार ने राज्य से घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए अच्छा कदम उठाया है। इस काम में सरकार को थोड़े और समय की जरूरत है।
20 फीसदी नमूने की दोबारा जांच करने की मांग
शीर्ष अदालत में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि असम के सीमावर्ती जिलों में एनआरसी सूची में शामिल 20 फीसदी लोगों के दस्तावेजों की पुनः जांच की जाए। मेहता के अपील को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने खारिज करते हुए कहा कि हजेला रिपोर्ट के मुताबिक 80 लाख लोगों के दस्तावेजों की दोबारा जांच की गई है। साथ ही यह भी कहा कि फिर से इसके 20 फीसदी दस्तावेजों के जांच की जरूरत नहीं है। अदालत ने कहा कि इस मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई को होगी।