एक उपचार प्रक्रिया भी है क्षमा

यह विशुद्ध रूप से एक मानसिक अवस्था है। क्षमा वस्तुत: एक मनोदशा अथवा चित्त की एक प्रकार की वृृत्ति है जिससे मनुष्य दूसरों द्वारा पहुँचाए गए भौतिक अथवा मानसिक क्लेश को चुपचाप स्वीकार कर लेता है, सह लेता है और उसके प्रतिकार या दण्ड की इच्छा नहीं करता। इस प्रकार मन में प्रतिकार, प्रतिघात, प्रतिशोध, प्रतिक्रि या, प्रतिवैर, अस्वीकार्यता, अमर्ष, अशांति आदि नकारात्मक भावों का अभाव ही क्षमा है। क्षमा मन की एक सकारात्मक वृृत्ति है क्योंकि सकारात्मक भावों का समुच्चय ही धर्म है अत: धर्म का मूल तत्त्व है क्षमा।

यदि हम किसी को क्षमा नहीं करते या कर सकते तो इसका अर्थ है हम क्रोध, क्षोभ, अशांति, अस्वीकृति, प्रतिकार आदि नकारात्मक भावों का संचय और पाेषण अपने अंदर कर रहे हैं। इस अवस्था में हमारी सारी ऊर्जा अथवा जीवनी शक्ति इन्हीं भावों के पोषण और स्थायित्व में व्यय हो जाती है। सकारात्मक ऊर्जा नकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। हम अपनी ऊर्जा का उपयोग सकारात्मक भावों का निर्माण करने के बजाए उसे नकारात्मकता में परिवर्तित करने के लिए बाध्य हो जाते हैं। ऊर्जा का यह असंतुलन ही सभी व्याधियों के लिए उत्तरदायी है। क्षमा द्वारा इस प्रक्रिया को बदल कर ही हम स्वस्थ-संतुलित जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

माता-पिता और गुरु अपने बच्चों की असंख्य ग़लतियों को क्षमा कर उन्हें सुधार के लिए अवसर प्रदान करते हैं जो उनके रूपांतरण में ही सहायक होता है। गलती होना स्वाभाविक है। गलतियों से सीखकर ही आदमी आगे बढ़ता है अत: ग़लती होने पर क्षमा करना ज़रूरी है। गलती करने वाले को ही नहीं अपराधी को भी क्षमा करके श्रेष्ठ मार्ग पर लाया जा सकता है।

जो लोग न क्षमा माँगना जानते हैं और न क्षमा करना, वे अपने लिए इस धरती पर ही नरक की सृष्टि कर लेते हैं और उसमें पड़े रहते हैं। क्षमाशील व्यक्ति ही इस धरती पर स्वर्ग की सृष्टि कर जीते जी स्वर्ग भोगते हैं। यही वास्तविक मोक्ष है।

● सीताराम गुप्ता (स्वास्थ्य दर्पण)

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