जानिए अक्षय नवमी या आंवला नवमी की ति​​​थि व महत्व

कोलकाता: पुराणों में कार्तिक महीने में 4 मास की योगनिद्रा के बाद भगवान विष्णु जाग्रत होते हैं। इसके बाद से 4 महीनों से बंद पड़ी पूजा-पाठ और शुभ कार्यों का आरंभ हो जाता है। इस माह में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाती है। इसी महीने करवाचौथ, दिवाली, देव दीपावली, तुलसी विवाह समेत कई व्रत और त्योहार मनाए भी जाते हैं। इन्हीं में एक है अक्षय नवमी।

हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी या अक्षय नवमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने का विधान है। इस दिन लोग आंवले के पेड़ की पूजा करते हैं। पूजन के पश्चात वृक्ष के नीचे बैठकर ही भोजन करने का भी विधान है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि अक्षय नवमी या आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा क्यों की जाती है और इसका महत्व क्या है…

कब है आंवला नवमी ?
पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 01 नवंबर 2022 को रात 11 बजकर 04 मिनट से शुरू होगी। वहीं इसका समापन 02 नवंबर 2022 को रात 09 बजकर 09 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि को देखते हुए आंवला नवमी का पर्व 02 नवंबर को मनाया जाएगा।

आंवला नवमी का महत्व
मान्यता है कि आंवला वृक्ष के मूल में भगवान विष्णु, ऊपर ब्रह्मा, स्कंद में रुद्र, शाखाओं में मुनिगण, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्गण और फलों में प्रजापति का वास होता है। ऐसे में आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही इसकी पूजा करने वाले व्यक्ति के जीवन से धन, विवाह, संतान, दांपत्य जीवन से संबंधित समस्या खत्म हो जाती है। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए अक्षय नवमी का दिन सबसे उत्तम माना जाता है।

आंवले के पेड़ की पूजा…
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी भ्रमण करने के लिए पृथ्वी लोक पर आईं। रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। माता लक्ष्मी ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय होती है और बेलपत्र भगवान शिव को। मां लक्ष्मी को ख्याल आया कि तुलसी और बेल का गुण एक साथ आंवले के पेड़ में ही पाया जाता है।

ऐसे में आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले की वृक्ष की पूजा की। कहा जाता है कि पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया, जिस दिन मां लक्ष्मी ने शिव और विष्णु की पूजा की थी, उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। तभी से कार्तिक शुक्ल की नवमी तिथि को आंवला नवमी या अक्षय नवमी के रूप में मनाया जाने लगा।

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