नयी दिल्ली: अयोध्या में मस्जिद निर्माण के लिए गठित इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट में किसी सरकारी प्रतिनिधि को शामिल करने का निर्देश देने से उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ के खंडपीठ ने शिशिर चतुर्वेदी की जनहित याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि अयोध्या में मस्जिद के लिए बने न्यास में केंद्र या फिर राज्य सरकार का कोई भी प्रतिनिधि शामिल नहीं होगा। याचिकाकर्ता ने अयोध्या में राम मंदिर ट्रस्ट की तरह ही पांच एकड़ की वैकल्पिक जमीन में मस्जिद निर्माण के लिए गठित न्यास में भी सरकारी प्रतिनिधि शामिल करने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार को निर्देश देने की मांग की थी।
याचिका में कहा गया था कि कोष के सही प्रबंधन के लिए निजी लोगों और राज्य सुन्नी बोर्ड के सदस्यों के अलावा केन्द्र और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों की मौजूदगी जरूरी है। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मस्जिद बनाने के लिए दी गयी पांच एकड़ जमीन में एक मस्जिद सांस्कृतिक एवं अनुसंधान केन्द्र, सामुदायिक रसोई, एक अस्पताल और एक पुस्तकालय सहित जन उपयोगी केन्द्र के निर्माण के वास्ते ‘इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन’ नाम से एक न्यास बनाने की घोषणा 29 जुलाई 2020 को की थी। इसमें सरकार के किसी अधिकारी को नामित करने का कोई प्रावधान नहीं है, जैसा केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गए न्यास में होता है। उम्मीद है कि सैकड़ों लोग ‘इस्लामिक ट्रस्ट’ स्थल पर जायेंगे और इसे भारत के साथ ही विदेशों से भी कोष मिलेगा, इसलिए कोष का और न्याय की संपत्तियों का सही प्रबंधन होना चाहिए।
अयोध्या : मस्जिद निर्माण के लिए न्यास में सरकारी प्रतिनिधि नामित करने की याचिका कोर्ट में खारिज
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