
अगर आपके परिवार में कोई सदस्य कोरोना पॉजिटिव निकल आये तो परिवार के सदस्य के नाते आप क्या करें ?
जैसा कि हम देख ही रहे हैं कि लॉक डाउन में ढील दिये जाने के बाद सभी रिलैक्स हैं। लोग बाहर निकलने लगे हैं और इसके परिणामस्वरूप कोविड के मामले बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में यदि आपके परिवार में किसी को कोरोना हो गया तो स्वाभाविक तौर पर परिवार के लिए चिंता का विषय हो जाता है। लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इसके लिए तैयार रहना चाहिए। हालांकि इससे चिंतित होने की जरूरत नहीं लेकिन वैज्ञानिक और चिकित्सकीय मापदंडों पर प्रमाणित सभी आवश्यक कदम उठाये जाने की जरूरत है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि आज की स्थिति में यदि किसी में बुखार, खांसी, छाती में दर्द, सांस लेने में तकलीफ सिरदर्द, स्वाद और गंध का पता न चलना, आदि लक्षण पैदा होते हैं, स्वाभाविक रूप से कोई भी यह सोच सकता है कि यह कोविड हो सकता है। इसके बाद कुछ प्रश्न मन में उठना शुरू हो जाते हैं। ये प्रश्न हैं-
-क्या हमें जांच करवानी चाहिए ?
-कौन सा टेस्ट करवाया जाय ?
-टेस्ट कब करवाया जाय ?
-क्या हम रोगी की देखभाल घर में ही करें या अस्पताल लेकर जायें ? इसके क्या फायदे और नुकसान हो सकते हैं ?
-क्या इसके लिए कोई विशेष दवा है ?
इस तरह के बहुत से प्रश्न हमारे मन में उमड़ने घुमड़ने लगते हैं। आइये जानें डॉक्टरों का क्या कहना है-
क्या हमें जांच करवानी चाहिए ?
यह प्रश्न इसलिए मन में उठता है कि व्यक्ति सोचता है कि जैसे ही उसका टेस्ट पॉजिटिव होगा, उसे सरकारी संरक्षण में भेज दिया जायेगा जहां उनकी परेशानी बढ़ सकती है। लेकिन यह सोच बिल्कुल गलत है। सरकारी तंत्र का रवैया एकदम मददगार होता है। वे आपको फोन करते हैं, आवश्यक सामग्री भिजवाते हैं जैसे डिस्पोजेबल प्लास्टिक बैग ताकि मरीज के संक्रमित सामान उसमें रखे जा सकें। वैन आकर उन सामानों को ले जाती है। इसलिए यह कोई समस्या नहीं है। टेस्ट करवाना यह जानने के लिए अति महत्वपूर्ण कदम होता है, कि मरीज पॉजिटिव है या नहीं ताकि उसके आधार पर समुचित निर्णय लिये जा सकते हैं। इसलिए टेस्ट करवाने में हिचकें नहीं।
कौन सा टेस्ट करवाया जाय ?
डॉक्टरों का कहना है कि अब टेस्ट करवाने की बात आती है तो इसके लिए कई तरह के टेस्ट हैं- मसलन तीन चार तरह के। सबसे महत्वपूर्ण है – आरटीपीसीआर। यह सर्वाधिक प्रभावी और विशेष प्रकार का टेस्ट होता है, जिसे करवाया जाना चाहिए। रैपिड एंटिजेन टेस्ट का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि जांच की रिपोर्ट आधे घंटे में आ जाती है और यह सस्ता भी है। यदि रिपोर्ट पॉजिटिव है तब तो स्पष्ट है लेकिन यदि रिपोर्ट नेगेटिव है तो इसका ध्यान रखें कि ऐसी स्थिति में इसकी संभावना ज्यादा होती है कि हो सकता है कि यह नेगेटिव भ्रामक हो और टेस्ट में लक्षण पकड़ में न आ पाए हों। इस स्थिति में एंटी बॉडी टेस्टिंग की कोई भूमिका नहीं होती है। डॉक्टरों का यह भी कहना है कि टेस्ट की रिपोर्ट आने में कभी कभार देर हो जाती है लेकिन जब तक टेस्ट की रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक मरीज को कोविड पॉजिटिव मानकर उसे अलग (एकांतवास) ही रखें। अलग रखने का मतलब है 14 दिनों के लिए उसे एकांत में रखें और इस नियम का कड़ाई से पालन करें। मरीज को उसके कमरे में ही रखें। उस कमरे में यदि अन्य परिजन रहते हों तो उन्हें उस कमरे से हट जाना चाहिए। यदि उस कमरे में अटैच्ड टॉयलेट बाथरूम है तो बहुत अच्छा। यदि कमरे से अटैच्ड टैरेस या बालकनी हो तो और भी अच्छा। इससे व्यक्ति बाहर निकल कर ताजा हवा ले सकता है। मरीज को दिये जाने वाले सभी खाद्य पदार्थ डिस्पोजेबल कंटेनर में दिये जाने चाहिए। उसके द्वारा इस्तेमाल की गयी प्लेटें, चम्मच आदि वापस घर में न लाएं। इन 14 दिनों के दौरान मरीज की जरूरत की सभी सामग्री फोन, चार्जर, किताबें, लैपटॉप, म्यूजिक, टीवी वह अन्य आवश्यक वस्तुएं जो भी उसे चाहिए उसे मुहैया कराएं। और इसके लिए एक व्यक्ति को निर्धारित किया जाना चाहिए कि वही कमरे के पास जाये और बाहर ही सारा सामान रख दे। फिर वापस आकर उस व्यक्ति को फोन से सूचना दे दे कि वह आकर अपना सामान ले जाय। जो व्यक्ति संक्रमित है उसे मास्क लगाना चाहिए। और वही व्यक्ति स्वयं प्रतिदिन एक बार अपने कमरे की सफाई समुचित तरीके से करे और निर्धारित व्यक्ति कमरे के बाहर उन स्थानों/सतहों जैसे डाइनिंग टेबल आदि की अल्कोहल आदि से सफाई करे, जहां संक्रमित व्यक्ति द्वारा एकांत में जाने से पहले स्पर्श किये जाने की संभावना हुई हो। उसके बाद स्प्रिट या साबुन से स्वयं को स्वच्छ करे। परिवार के अन्य सदस्यों को भी मास्क पहनना चाहिए और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना चाहिए। अब यह व्यक्ति एकांत में है और उससे संक्रमित होने की आशंका नहीं है। लेकिन टेस्ट रिपोर्ट आने से पहले या उसमें लक्षण दिखायी पड़ने के पहले दो दिनों में उससे अन्य सदस्यों में संक्रमण फैला हो सकता है। इसलिए अगले पांच से सात दिनों तक अपने और परिजनों में लक्षणों के प्रति सतर्कता बरतना चाहिए और यदि उनमें भी लक्षण दिखायी देने लगें तो उन्हें भी टेस्ट करवाना चाहिए।
डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना संक्रमित मरीज के प्रति जिन बातों का ध्यान रखना चाहिए, वे इस प्रकार हैं-
-नियमित तापमान का चार्ट तैयार करें, पल्स और श्वास लेने की दर (रेस्पिरेटरी रेट) पर ध्यान रखें।
-यदि संभव है तो पल्स ऑक्सीमीटर के जरिये रोगी के शरीर में ऑक्सीजन की जांच करें।
-पल्स ऑक्सीमीटर एक उपकरण है जिसमें अंगुली रखनी होती है। यह उपकरण खून में ऑक्सीजन के स्तर को मापने के काम आता है।
-यदि पल्स ऑक्सीमीटर से की गयी जांच में ऑक्सीजन की मात्रा 97%-98% है तो चिंता की कोई बात नहीं। आप 3 या 6 मिनट का एक वॉक टेस्ट भी कर सकते हैं। इससे पहले आप पल्स ऑक्सीमीटर की रीडिंग ले लें और वॉक के बाद की रीडिंग ले लें। वॉक के बाद यदि ऑक्सीजन का स्तर 97% ही है, तो चिंता की बात नहीं है लेकिन यदि स्तर गिरकर 93%-94% पर आ जाता है तो यह चिंता का विषय है। इसके बारे में डॉक्टर को बताएं।
-जैसे ही कोविड टेस्ट पॉजिटिव रिपोर्ट आती है तो कृपया अपने निजी डॉक्टर को जरूर बताएं क्योंकि वही आपकी शारीरिक स्थिति को बेहतर तरीके से जानता है और यह बता सकता है कि आप कौन सी दवा लें पैरासिटामॉल, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन, डाक्सीसाइक्लिन, विटामिन सी, जिंक आदि। अब तो इसके लिए विशेष दवाएं आ गयी हैं। इन्हें आप जितनी जल्दी ले सकें तो आपको मदद मिलेगी लेकिन ये दवाएं आपके लिए हैं या नहीं इसका निर्णय डॉक्टर ही करेगा।
-इसके अलावा देसी इलाज भी कर सकते हैं जैसे काढ़ा, गिलोय आदि का सेवन। इसमें कोई हानि नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण है कि आप ज्यादा उतावले न हों, प्रत्येक स्थिति पर सावधानी से निगरानी रखें, वैज्ञानिक रूप से सटीक तरीके का ही इस्तेमाल करें।
खतरनाक लक्षण कौन से हैं ?
-श्वास लेने में दिक्कत।
-बहुत ज्यादा कमजोरी।
-तेज बुखार, जो कम न हो रहा हो।
-मरीज सुस्त हो गया हो।
ये सब अच्छे संकेत नहीं हैं। जैसे ही ये लक्षण दिखें, मरीज को तुरंत अस्पताल ले जायं और किस अस्पताल में ले जाना है उसके बारे में पहले ही निर्धारित कर लें। लेकिन स्वस्थ व्यक्तियों में इन स्थितियों के पैदा होने की संभावना 5 प्रतिशत से भी कम है। -(स.हे.डे.)