
वाशिंगटनः अमेरिका रूस के साथ वर्षों पुरानी परमाणु संधि से खुद को अलग कर लिया है। इससे पहले अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने ऐलान किया कि दोनों देशों के बीच शीत युद्ध के बाद यह संधि हुई थी, लेकिन रूस कई सालों से बिना पछतावे के इस संधि का उल्लंघन कर रहा है। इससे यूरोप और अमेरिका के करोड़ों लोगों की जान को दांव पर लगा दिया गया है। इसका उचित जवाब देना हमारा कर्तव्य है। हमने रूस को काफी समय दिया। यह समझौता 1987 में हुआ था।
लंबे समय से इस संधि के लटकने की आशंका जताई जा रही थी। इसके चलते अब दोनों देशों में एक बार फिर से हथियारों की दौड़ शुरू हो सकती है और यूरोप के देशों के लिए गंभीर खतरा खड़ा हो गया है। पोम्पियो ने छह महीने का समय दिया है अगर रूस बात नहीं मानता है तो अमेरिका इससे पूरी तरह से इस अलग हो जाएगा।
यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था पर असर
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई महीनों से यह संकेत दे रहे थे कि वे इस संधि से अलग हो सकते हैं। उनका आरोप था कि रूस साल 2014 से इस संधि को नहीं मान रहा है. इस संधि में केवल रूस और अमेरिका ही शामिल हैं लेकिन इसका यूरोप की सुरक्षा पर भी काफी असर पड़ता है।अभी तक इस संधि के चलते परमाणु हथियार संपन्न मिसाइलें दागने पर रोक थी लेकिन अब 310 से लेकर 3100 मील की दूरी तक की मिसाइलों का रास्ता खुल गया है।
नाटो ने अमेरिका का किया समर्थन
अमेरिका के सहयोगी नाटो ने ट्रंप सरकार के फैसले का समर्थन किया है। नाटो ने कहा कि रूस लगातार यूरो-अटलांटिक सुरक्षा के लिए खतरा खड़ा कर रहा था। नाटो ने रूस से अपील की है कि वह छह महीने के समय का उपयोग करे और संधि की शर्तों को मान ले। अमेरिकी अधिकारियों ने इस बात पर चिंता जताई थी कि इस संधि के तहत चीन नहीं आता है और वह सैन्य क्षमता बढ़ा रहा है जबकि अमेरिका पर इस संधि के चलते पाबंदियां हैं।