वाशिंगटन : अमेरिका ने भारत की तुलना में पाकिस्तान को धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की ‘विशेष चिंता’ वाली श्रेणी में डालने का कारण बताते हुए बुधवार को कहा कि जहां पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन सरकार द्वारा किया जाता है, भारत में इस तरह के ज्यादातर मामले सांप्रदायिक हिंसा के हैं और इसीलिए अमेरिका ने पाकिस्तान को उन देशों की सूची में शामिल किया है जबकि भारत को इस सूची में शामिल नहीं किया गया है।
सूची में ये देेश हैं शुमार : अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने सोमवार को पाकिस्तान और चीन के साथ म्यामां, इरिट्रिया, ईरान, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान को उस सूची में डाला जो ‘धार्मिक स्वतंत्रता के व्यवस्थित, निरंतर एवं घोर उल्लंघन’ में लिप्त हैं या फिर ये उल्लंघन होने दे रहे हैं’।
भारत को सीपीसी में डालने की हुई थी सिफारिश : अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने भारत को भी विशेष चिंता का विषय बने देशों (कंट्रीज ऑफ पर्टीक्यूलर कंसर्न या सीपीसी) की सूची में डालने की सिफारिश की थी जिसे विदेश विभाग ने खारिज किया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने अप्रैल में अवलोकनों को खारिज करते हुए कहा था, ‘यह पक्षपातपूर्ण है और भारत के खिलाफ पक्षपातपूर्ण टिप्पणियां कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस बार तो गलतबयानी नए स्तर पर पहुंच गई। इस काम में तो उनके अपने आयुक्त उनके साथ नहीं हैं।’ प्रवक्ता ने कहा, ‘हम इसे विशेष चिंता वाला संगठन मानेंगे और उसी के मुताबिक व्यवहार रखेंगे।’
ईसाई और हिंदू महिलाओं का उत्पीड़न : एक शीर्ष अमेरिकी राजनयिक ने कहा कि धर्मांतर अथवा ईशनिंदा के कारण दुनियाभर की जेलों में बंद लोगों की कुल संख्या में से आधे पाकिस्तान की जेलों में हैं। उन्होंने कहा, ‘ईसाई और हिंदू महिलाओं को चीन में रखैल या जबरन दुल्हन बनाकर भेजा जाता है क्योंकि वहां इन समुदायों को खास समर्थन नहीं मिलता है। और फिर वहां धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव होता है जो उन्हें अधिक कमजोर बनाता है।’
ब्राउनबैक ने किया भारत का समर्थन : मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के लिए ‘एम्बेसेडर एट लार्ज’ सेमुअल ब्राउनबैक ने पाकिस्तान के खिलाफ उठाए गए कदम का बचाव करते हुए कहा, ‘पाकिस्तान में (धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन से संबंधित) बहुत सारी गतिविधियां सरकार द्वारा की जाती हैं। भारत में इनमें से कुछ सरकार द्वारा और पारित किए गए कानून की वजह से होता है तथा ज्यादातर (मामले) सांप्रदायिक हिंसा होती है। और जब यह होती है तो हम यह निर्धारित करने की कोशिश करते हैं कि क्या वहां पुलिस का प्रभावी बंदोबस्त हुआ था या नहीं, (और) सांप्रदायिक हिंसा के बाद न्यायिक कदम प्रभावी ढंग से उठाए गए या नहीं।’