छठ पूजा में नहीं पड़ती पंडित की आवश्यकता; क्यों? जानिए कारण

कोलकाता: सूर्य देव एक दार्शनिक देवता माने जाते है। हिंदू धर्म के अनुसार सूर्य देव की पूजा अन्य देवी-देवताओं से अलग है। इनकी पूजा के लिए किसी भी प्रकार की पंडित की आवश्यक नहीं पड़ती। लोग सीधे उनके दर्शन करके पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

महापर्व छठ हर साल कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। हर साल इस त्योहार पर हजारों लोग नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य पूजा करते हैं। लेकिन कभी आप ने ये सोचा है, कि छठ पूजा के रीति-रिवाजों को करनें के लिए किसी पंडित की आवश्यकता क्यों नहीं पड़ती ?

महापर्व छठ पर व्रती पूजा के तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। रिग वेद में इस पर्व का जिक्र किया गया है, और पूजा के लिए कुछ मंत्र भी रिग वेद से लिए गए हैं। ज्यादातर लोग खुद ही सूर्य की पूजा के वक्त भगवान सूर्य और छठी माता के मंत्र पढ़ लेते हैं। लोग इस दिन मुख्यता, भगवान को आस्था के तौर पर तरह-तरह के फल और पकवान चढ़ाकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

छठ पूजा का महत्वहिंदु ग्रंथो और पौराणिक कथाओं के अनुसार छठी माता भगवान विषणु की मानस पुत्री हैं। मान्यता यह भी है कि छठी माता सूर्य देवता की बहन हैं। उन्हें दुर्गा का रूप, देवी कात्यायनी का अवतार माना जाता है। ब्रह्मांड के निर्माण के वक्त ब्रह्मा जी ने खुद को दो हिस्सों में बांट लिया था। जिसमें एक हिस्सा पुरुष बना और दुसरे ने स्त्री का रूर धारण किया, जो बाद में प्रकृति माँ बन गई। ऐसा माना जाता है कि प्रकृति मां ने अपने आप को छः भागों में बांटा जिसमें से अंतिम रूप छठी कहा गया।

पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है जब प्रभु श्री राम और माता सीता अयोध्या लौटे थे, दोनों नें सूर्य देवता के सम्मान में व्रत रखा था और डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर अपना व्रत तोड़ा था। मान्याता है कि पांडवों और द्रोपदी ने भी, अपना राज्य वापस पाने के बाद, छठ पूजा की थी। इसके अलावा, सूर्य देवता और कुंती के पुत्र कर्ण ने भी, जल में खड़े होकर पूजा की थी। इसके बाद कर्ण ने अंग देश पर शासन किया, जो आज भागलपुर के नाम से जाना जाता है।

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