सोनू ओझा
दो-चार घरों को छोड़कर हर दरवाजे पर लगा है ताला
तीसरी आंख से रखी जा रही है पूरे गांव पर नजर
सन्मार्ग संवाददाता
रामपुरहाट : बागतुई गांव के लोगों ने 21 मार्च की रात यह सोचा भी नहीं होगा कि उनके अपने गांव की 8 जिंदगियां रात के अंधेरे में जलकर खाक हो जाएंगी। 4 दिन पहले तक जो हाड़-मांस का शरीर था, वह हड्डियों के ढांचे में बदल जाएगा। न कोई सियासी रंजिश, न मजहबी रंग, बावजूद इसके महिला और मासूम बच्चों को आग में जलाकर मार दिया गया। घटना के 4 दिन बाद भी आग और उसमें खाक हुए लोगों के चमड़े की गंध इस कदर हवा में घुल गई है, मानो ये इंसानों से बसा गांव नहीं बल्कि उन्हें अंतिम विदाई देने वाला श्मशान हो। रामपुरहाट से करीब 2 किलोमीटर तक जाने पर जैसे ही कदम बागतुई गांव की तरफ बढ़ते हैं, एक गंध अनायास ही इस ‘नरसंहार’ की घटना की तरफ ध्यान ले जाती है। किसी से पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ती कि क्या यह वही गांव है जहां घरों में आग लगाकर महिला व बच्चों को जिंदा जला दिया गया था ?
पूरा गांव शांत, न खेलते बच्चे, न लोगों का अड्डा
इस गांव में करीब 50 परिवार रहा करता था जिसकी संख्या आज इकाई में भी नहीं है। घटना की दहशत के बाद सभी गांव छोड़कर चले गए, जो बचे हैं उन्होंने बताया कि हमारा गांव हरा-भरा था। आपस में रंजिश भले हो, बच्चों के खेलने की आवाज और दोस्तों की महफिल घरों के बाहर हमेशा लगी रहती थी। आज इन घरों के दरवाजों पर ताला लटका है। अंधेरा होते-होते पूरा गांव खामोशी के आगोश में सिमट जाता है, लोग चाह कर घरों से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं करते हैं।
जले घरों पर सीसीटीवी की नजर, हर तरफ पुलिस का पहरा
फॉरेंसिक विभाग के जाने के बाद से ही पूरे गांव को सीसीटीवी से घेर दिया गया है। बैरिकेड लगा दी गई है, पुलिस बल तैनात हैं। नेताओं के आते ही लोग अपनी आपबीती बताने आ जाते हैं। उनके जाते ही दोबारा बागतुई गांव श्मशान जैसा शांत हो जाता है।
श्मशान सा पसरा है बागतुई में सन्नाटा
Visited 70 times, 1 visit(s) today