
कोलकाता : नए कृषि कानूनों के खिलाफ 20 दिन से चल रहे किसान आंदोलन का तोड़ केंद्र सरकार ने ढूंढ लिया है। उच्चस्तरीय सूत्रों का कहना है कि किसान भले ही कानूनों को रद्द करने के बाद ही बातचीत की बात कह रहे हों, लेकिन सरकार ने ऐसा रास्ता निकाल लिया है, जिससे यह विरोध केंद्र सरकार बजाय राज्य सरकारों के माथे आ जाए।
सूत्रों के अनुसार सरकार कानूनों को रद्द करने की बजाय राज्य सरकारों को यह अधिकार देने पर विचार कर रही है कि वे चाहें तो नए कानूनों को लागू कर लें और न चाहें तो अपने राज्य में इन्हें लागू न करें। ऐसा करने के बाद सरकार आंदोलन कर रहे किसानों से कह देगी कि अब आपके राज्य की सरकार की मर्जी है, जैसा उसे किसान हित में लगे, वह कर ले। सूत्रों के अनुसार, सरकार अलग-अलग किसान नेताओं पर दबाव भी बना रही है कि वे इस आंदोलन को खत्म करें।
राज्यों ने लागू नहीं किए तो…?
भले एक बार के लिए केंद्र सरकार राज्य सरकारों को कृषि कानून लागू करने या न करने की छूट दे दे, लेकिन बाद में सभी राज्यों को इन्हें लागू करने के लिए मजबूर कर दिया जाएगा। इसके लिए कृषि सुधारों की आड़ ली जाएगी। सूत्रों का कहना है कि फिलहाल सरकार किसी भी तरह इस आंदोलन को खत्म कराना चाहती है। बाद में वह राज्यों पर शर्त लगा देगी कि कृषि सुधार करने पर ही उनको कृषि सब्सिडी या कृषि के लिए सहायता दी जाएगी और इसमें कृषि सुधारों का मतलब होगा इन तीनों कानूनों को पूरी तरह लागू करना। यही तरीका सभी राज्यों में जीएसटी को पूरी तरह लागू करने के लिए भी अपनाया जा चुका है। तब चूंकि ये कानून धीरे-धीरे लागू कराए जाएंगे, इसलिए किसान एकजुट होकर ऐसा आंदोलन नहीं कर पाएंगे और करेंगे भी तो वह राज्य सरकारों के खिलाफ होगा।
आंदोलन को तोड़ने की कोशिशें जारी
किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए सरकार हर संभव कोशिश कर रही है। इसी के तहत खालिस्तानियों के समर्थन, नक्सलियों के घुस आने और वामपंथियों द्वारा आंदोलन को हाइजैक कर लेने के दावे किए जा रहे हैं। साथ ही, विभिन्न राज्यों के किसान संगठनों से सरकार का समर्थन कराया जा रहा है। इसी कड़ी में भाजपा ने देशभर में 700 किसान चौपाल लगाने का निर्णय लिया है। साथ ही, कुछ किसान नेताओं से पिछले दरवाजे से बातचीत जारी है।