महज एक गांव नहीं, बंगाल की सत्ता में परिवर्तन का प्रतीक है नंदीग्राम
दादा और दीदी की लड़ाई में किसके हाथ लगेगा विजय रथ, तय करेगी नंदीग्राम की जनता
कोलकाता : बंगाल की भौगोलिक पृष्ठभूमि पर नंदीग्राम की पहचान एक गांव के तौर पर रही है मगर राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यही नंदीग्राम बंगाल के लिए महज एक गांव नहीं बल्कि सत्ता में परिवर्तन लाने का प्रतीक रहा है। नंदीग्राम वहीं गांव है जहां आंदोलन करके बंगाल की अग्निकन्या के रूप में उभरी ममता बनर्जी ने 34 के लंबे लाल दुर्ग को ध्वंस किया और राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। आज एक दशक के बाद एक बार फिर नंदीग्राम सुर्खियों में आ गया है। कारण ममता बनर्जी का इस विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा करना है। दरअसल 5 सालों के बाद ममता नंदीग्राम में अपनी सक्रियता बढ़ा रही हैं। अब तक इसकी कमान ममता के खासमखास रहे शुभेन्दु अधिकारी के हाथों में थी जो अब भाजपा के हो चुके हैं। ममता के लिए नंदीग्राम बहुत मायने रखता है क्योंकि इसे ममता अपनी राजनीतिक सफलताओं में माइलस्टोन मानती हैं। शुभेंदु का भाजपा में जाना वह भी उस समय जब भाजपा बंगाल की राजनीति में लगभग पैठ जमा चुकी है, ममता के लिए नंदीग्राम बड़ी चुनौती के रूप में खड़ा है। जानकारों की माने तो इन्हीं कारणों से ममता ने खुद को नंदीग्राम से प्रार्थी घोषित कर कुछ हद तक राजनीतिक समीकरणों को अपने अनुरूप करने की कोशिश की है।
ममता और शुभेन्दु दोनों के लिए ही साख की लड़ाई है नंदीग्राम
एक दौर था जब नंदीग्राम आंदोलन की पूरी बागडोर शुभेन्दु के हाथों में दी गयी थी। वजह यही थी कि इस सीट से तृणमूल ने शुभेन्दु को प्रार्थी भी बनाया था जहां वह करीब 67 प्रतिशत वोटों से जीते थे, जबकि भाजपा को महज 5 प्रतिशत वोट मिले थे। जानकारों की माने तो स्थानीय होने के नाते नंदीग्राम या कहें पूर्व मिदनापुर में ही हमेशा से ही अधिकारी परिवार का वर्चस्व रहा है। शायद यही कारण है कि शुभेन्दु को भाजपा खेमे में अच्छा खासा तवज्जो भी मिल रहा है। अधिकारी परिवार को मात देने के लिए अब ममता खुद मैदान में उतर गयी हैं और उन्होंने दावा किया है कि वह इस सीट से जीत कर दिखाएंगी क्योंकि बंगाल में तृणमूल का मतलब एक ही चेहरा है जो दीदी का है।
बदल गयी है नंदीग्राम की परिभाषा
नंदीग्राम का नाम अंतरराष्ट्रीय मंच पर औद्योगिक स्तर पर सरकारी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ हुए आंदोलन के लिए जाना जाता है। वहां हुए खूनी संघर्ष का गवाह रहा है नंदीग्राम मगर आज यही नंदीग्राम सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकृत होता नजर आ रहा है। 2007 में जहां नारा लगता था ‘तोमार नाम, अामार नाम नंदीग्राम, नंदीग्राम’ वहां अब ‘जय श्रीराम’ का नारा सुनायी देता है। स्थानीय लोगों की माने तो आज का समय काफी अलग है। आज धर्म के आधार पर यहां मतभेद हावी होता दिख रहा है। उधर तमलुक में भाजपा महासचिव गौर हरि मैती ने बताया कि ‘नंदीग्राम विस्फोटक के मुहाने पर बैठा है और इसके लिये सिर्फ टीएमसी की तुष्टीकरण की राजनीति जिम्मेदार है। दूसरी तरफ तृणमूल नेता अखिल गिरि का कहना है कि नंदीग्राम अपना धर्मनिरपेक्ष चरित्र नहीं खोएगा।
एक नजर में नंदीग्राम विधानसभा
जिला : पूर्व मिदनापुर
जनसंख्या करीब : 331054
ग्रामीण इलाका : करीब 96 प्रतिशत
शहरी इलाका : करीब 4 प्रतिशत
हिन्दू वोटर : करीब 65 प्रतिशत
अल्पसंख्यक वोटर : करीब 35 प्रतिशत
ममता का मास्टर स्ट्रोक है नंदीग्राम आंदोलन, शुभेन्दु के तेवर भी गरम
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