
कोलकाता : हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस टी बी राधाकृष्णन और जस्टिस अरिजीत बनर्जी के डिविजन बेंच में शुक्रवार को सुनवायी के दौरान हेवियस कॉर्पस का एक ऐसा मामला भी आया जिसे 23 साल पहले दायर किया गया था। इसे देखते ही चीफ जस्टिस भड़क उठे और कहा कि इसके लिए लिस्टिंग विभाग के जिम्मेदार अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई अनिवार्य है। कंचन तांती ने 1997 में तत्कालीन चीफ जस्टिस के डिविजन बेंच में हेबियस कॉर्पस का एक मामला दायर किया था। इसमें एक लापता बच्ची को बरामद करने की अपील की गई थी जिसे उसकी मां से नहीं मिलने दिया जा रहा था।
कहा : जिम्मेदार अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई अनिवार्य
चीफ जस्टिस के डिविजन बेंच ने डीजीपी को एफआईआर दर्ज करने और इसकी जांच करने का आदेश दिया था। इसके बाद 22 दिसंबर को मामले की सुनवायी हुई और डिविजन बेंच ने आदेश दिया कि तीन माह बाद मामले की लिस्टिंग की जाए। इस आदेश पर अमल करते हुए 23 वर्षों बाद मामले की लिस्टिंग की गई। चीफ जस्टिस ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह फाइल हाई कोर्ट की आलमारियों में 23 वर्षों तक शीतनिद्रा में पड़ी रही।
चीफ जस्टिस ने कहा कि हम न्यायिक व्यवस्था के एक अंग हैं और हमारे लिए यह मुनासिब नहीं है कि एक फाइल न्यायिक आदेश के बावजूद 23 वर्षो तक आलमारियों में पड़ी रहे। इसलिए यह उचित है कि इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की पहल की जाए। यह न्यायिक आदेश की अवहेलना करते हुए न्यायिक प्रक्रिया की दिशा को बदल देने की हरकत है। चीफ जस्टिस ने कहा कि इसकी कार्यवाही से साफ है कि उस बच्ची को उसकी मर्जी पर छोड़ दिया गया, अब वह जहां चाहे वहां जाए और अगर चाहे तो सीआरपीसी की धारा 161 के तहत बयान रिकार्ड करा ले। चीफ जस्टिस ने इस मामले को बंद करने का आदेश दिया।