
पुरानी तस्वीर देने में कम से कम लगेंगे 3 दिन
सोनू ओझा,कोलकाता : प्राकृतिक आपदाओं में देवदूत बनकर लोगों की रक्षा करने वाले एनडीआरएफ के जवानों के लिए चक्रवात का सामना करना आम बात हो गई है, मगर कोरोना के साथ एक्सट्रीम साइक्लोन का सामना करना बड़े चैलेंज के साथ नया तजुर्बा भी रहा। इसका हमने सामना किया और विजय हासिल की। उम्मीद है कि जल्द कोलकाता और बंगाल के प्रभावित इलाकों को उसकी पुरानी तस्वीर मिल जाएगी। अम्फान या कहे कोरोना के साथ अम्फान को लेकर अपने विचार व्यक्त करते हुए एनडीआरएफ के डीजी सत्यनारायण प्रधान ने सन्मार्ग को बताया कि 1 साल में दो बड़े एक समान साइक्लोन का सामना करना बहुत बड़ा चैलेंज रहा। दोनों ही चक्रवात की स्पीड एक समान थी मगर फेनी ने शहरों को अपना ठिकाना बनाया था जबकि अम्फान से गांवों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा।
कम से कम 3 दिन और
उन्होंने बताया कि अभी भी हमारी टीम बंगाल के अलग-अलग प्रभावित इलाकों में अपना काम कर रही है। वहां कुल 39 टीमें हैं, उसमें से 20 टीमें सिर्फ कोलकाता के लिए काम कर रही हैं। राहत कार्य में हमें कम से कम 3 दिनों का वक्त लग सकता है, या 4 दिन भी हो सकते हैं।
कोलकाता के पुराने ढांचे ने अम्फान को दिया मौका
कोलकाता जैसा पुराना शहर और उसकी घनी आबादी ने अम्फान को मौका दिया जिस कारण महज 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार में बह रही हवा को फैलने का मौका नहीं मिला और कोलकाता पूरी तरह तहस-नहस हो गया। कोलकाता का कंजक्शन ही उसके लिए मारक रहा, जिसकी उम्मीद हमने नहीं की थी।
चक्रवात से बड़ा कोरोना रहा चैलेंज
उन्होंने बताया कि चक्रवात का सामना करना तो हम सीख गए हैं। प्राकृतिक आपदाओं से लड़ना हमारा काम है। मगर कोरोना जैसी महामारी ने उस वक्त हमारी परेशानी बढ़ा दी जब लोगों को राहत शिविर में जाने पर हिचकिचाहट हो रही थी। मगर हमारे समझाने बुझाने के बाद उन्होंने हमारी बात मानी और राहत शिविर में गए। अब देखने वाली बात यह है कि हमारे जवान भी पूरी तरह सुरक्षित हो क्योंकि यहां सिर्फ चक्रवात से लड़ना नहीं था बल्कि कोरोना भी मुंह बाए खड़ी थी।