

सिलीगुड़ी : देशभर में रोशनी का पर्व दीपावली नज़दीक है और चारों ओर तैयारियों का माहौल है। यह पर्व केवल घरों में दीये जलाने और मिठाइयों का नहीं, बल्कि अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी है। इस उत्सव को लेकर सिलीगुड़ी के विभिन्न इलाकों में मोमबत्ती निर्माण कार्य जोरों पर चल रहा है। हालांकि बाज़ारों में आजकल इलेक्ट्रिक दीये, एलईडी स्ट्रिप्स और लाइट्स की भरमार है, फिर भी पारंपरिक मिट्टी के दीयों और हाथ से बनी मोमबत्तियों की चमक अब भी फीकी नहीं पड़ी है।
हर दिन बन रहीं हजारों मोमबत्तियां
सिलीगुड़ी के अलग-अलग छोटे कारखानों में इस समय हर दिन 1000 से ज्यादा मोमबत्तियां तैयार की जा रही हैं। ये मोमबत्तियां न सिर्फ शहर में, बल्कि आसपास के पहाड़ी इलाकों और डुआर्स जैसे क्षेत्रों में भी सप्लाई की जाती हैं। कारखाना मालिकों का कहना है कि दीपावली उनके लिए साल का सबसे व्यस्त और आय वाला सीज़न होता है। एक स्थानीय व्यापारी ने बताया कि साल भर बिक्री धीमी रहती है, लेकिन दीपावली के एक महीने पहले से ही ऑर्डर आने शुरू हो जाते हैं। इस समय की कमाई पूरे साल के लिए सहारा बनती है।
अब भी जल रही है परंपरा की लौ
आधुनिकता और बाजार में तकनीकी उत्पादों की भरमार के बावजूद लोगों के दिलों में परंपरा के लिए जगह अब भी बनी हुई है। यही वजह है कि दीपावली से पहले मिट्टी के दीये और मोमबत्तियों की मांग अचानक बढ़ जाती है। एक ग्राहक ने कहा कि बिजली की लाइट तो हर दिन होती है, लेकिन दीपावली पर जो भावना दीयों और मोमबत्तियों से जुड़ी होती है, वो किसी और चीज़ में नहीं।
आर्थिक सहारा बना दीपावली सीज़न
दीपावली का यह सीज़न सिर्फ रौशनी का नहीं, बल्कि सैकड़ों परिवारों के लिए रोज़गार और आर्थिक सहारे का भी प्रतीक है। छोटे कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों के चेहरों पर इन दिनों उत्साह झलक रहा है। मोमबत्ती कारीगर ने मुस्कुराते हुए कहा कि दीपावली से पहले 10-12 घंटे लगातार काम करते हैं, लेकिन मन में खुशी होती है कि हमारा बनाया हर दीप किसी के घर को रौशन करेगा।