दिवाली से पहले पटाखा श्रमिकों की जिंदगी अंधेरे में

- नए क्लस्टर में जगह मिलने के बाद काम वापस पहले की तरह बढ़ने की जता रहे उम्मीद
labour makes firecrakers
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सन्मार्ग संवाददाता

सिलीगुड़ी : दिपावली के पर्व में बस कुछ ही दिन बाकि है और चारों ओर रोशनी की तैयारियां शुरू हो गई हैं। इस रोशनी के त्योहार को खास बनाते हैं रंग-बिरंगे पटाखे और आतिशबाज़ियां। लेकिन इन्हें बनाने वाले कारीगरों की जिंदगी खुद अंधकार में डूबी हुई है। उत्तर बंगाल के प्रमुख पटाखा निर्माण केंद्रों में से एक फांसीदेवा के हाथीरामजोत गांव में स्थित पटाखा फैक्टरी के हालात बेहद चिंताजनक हैं। जहां कभी इस फैक्टरी में 15-20 मजदूर काम करते थे, वहीं अब 2025 में केवल तीन मजदूर ही काम कर रहे हैं।

2024 में भी यह संख्या केवल चार थी। इन गिरते आंकड़ों के पीछे मुख्य कारण हैं सरकारी नियमों की कड़ाई और जगह की कमी। दरअसल, 2023 में नए नियम लागू होने के बाद से पटाखों के निर्माण और भंडारण को लेकर कई पाबंदियां लगाई गईं। नतीजतन, फैक्टरी में अब कम मात्रा में ही पटाखे बनाए जा पा रहे हैं और अधिक मजदूरों को काम पर रखना संभव नहीं हो पा रहा है। हालांकि, हाल ही में इस संकट के बीच एक नई उम्मीद जगी है। राज्य सरकार ने पटाखा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए पश्चिम बंगाल के छह जिलों में बाज़ी क्लस्टर (पटाखा निर्माण केंद्र) बनाने की घोषणा की है, जिसमें दार्जिलिंग भी शामिल है।

फांसीदेवा ब्लॉक के लियुसीपाकड़ी इलाके में तिस्ता कैनल के पास एक ज़मीन को इसके लिए चिन्हित किया गया है। फैक्टरी के संचालक जयंत सिंह राय का कहना है कि अगर हमें उस क्लस्टर में जगह मिलती है, तो हम फिर से बड़ी संख्या में पटाखों का उत्पादन कर पाएंगे और पुराने मजदूरों को वापस काम पर रख सकेंगे।

शिवली मंडल नाम की महिला, जो वर्षों से इस फैक्टरी में काम करती थीं, इस साल काम से वंचित रह गईं। उन्होंने कहा कि बाजार में पटाखों को रखने के लिए जगह नहीं है, इसलिए हमें काम नहीं मिला। लेकिन अगर नया क्लस्टर बनता है, तो हम फिर से काम पर लौट सकेंगे। वर्तमान में काम कर रहे मजदूरों में से एक चिकन सिंह ने कहा कि पहले जितना काम नहीं है। यही हमारी आजीविका का एकमात्र जरिया है। अगर सरकार हमें नए क्लस्टर में जगह देती है, तो हमारा काम बढ़ेगा।

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